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न्यूज क्लिपिंग्स् | महंगे डीजल का सही निर्णय-डा भरत झुनझुनवाला

महंगे डीजल का सही निर्णय-डा भरत झुनझुनवाला

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published Published on Jun 27, 2013   modified Modified on Jun 27, 2013
लगभग छह माह पूर्व यूपीए सरकार ने डीजल के दाम बढ़ाने का निर्णय लिया था. विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इसका विरोध किया था. उनके दो मुख्य तर्क थे. एक यह कि मूल्य वृद्घि से महंगाई बढ़ेगी. दूसरा यह कि गरीब पर दुष्प्रभाव पड़ेगा. दोनों तर्क फेल हो गये हैं. महंगाई नियंत्रण में है और गरीब द्वारा हाहाकार का कोई संकेत नहीं है.

डीजल की मूल्य वृद्घि से महंगाई न बढ़ने का मुख्य कारण वित्तीय घाटे पर सुप्रभाव है. सरकार पर डीजल सब्सिडी का भारी बोझ पड़ रहा था. सरकारी तेल कंपनियों द्वारा तेल की खरीद लगभग 65 रुपये लीटर पर की जा रही थी, परंतु घरेलू बाजार में इसे 45 रुपये में बेचा जा रहा था. 20 रुपये की सब्सिडी सरकार के द्वारा दी जा रही थी. इस घाटे की पूर्ति के लिए सरकार को नोट छापने पड़ रहे थे. इससे महंगाई बढ़ रही थी.

डीजल के दाम बढ़ाने से प्रत्यक्ष रूप से महंगाई में वृद्घि हुई है. परंतु साथ-साथ सरकार के वित्तीय घाटे पर कुछ नियंत्रण होने से अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई घटी है. इसलिए डीजल के दाम बढ़ने के बावजूद महंगाई नहीं बढ़ी है, लेकिन विकास की दर गिरती जा रही है. इसका कारण यह है कि सरकार ने दूसरे रास्तों से खपत में वृद्घि की है. सरकारी कर्मियों के डीए में वृद्घि की गयी है. राजस्व का रिसाव पूर्ववत जारी है.

गरीब पर भी डीजल के दाम बढ़ाने का दुष्प्रभाव नहीं पड़ा दिखता है. गरीब द्वारा मुख्य रूप से कृषि, बस एवं रेल का उपयोग किया जाता है. इस आधार पर अनुमान है कि कुल डीजल सब्सिडी का 20 प्रतिशत लाभ कमजोर वर्ग को जाता था.

कुल डीजल सब्सिडी एक लाख करोड़ रुपये थी. 20 प्रतिशत के हिसाब से इसमें से 20,000 करोड़ रुपये कमजोर वर्ग को मिले ऐसा मानना चाहिए. कमजोर वर्ग की संख्या 100 करोड़ मानें, तो डीजल सब्सिडी से इन्हें 200 रुपये प्रति व्यक्ति का लाभ मिल रहा था. इसकी तुलना में 20 करोड़ ऊपरी वर्ग के लोगों को 4,000 रुपये प्रति व्यक्ति का लाभ मिल रहा था. यानी सब्सिडी का लाभ ऊपरी वर्ग को अधिक मिल रहा था.

ऊपरी वर्ग द्वारा डीजल कार एवं एसयूवी का अधिकाधिक उपयोग होता है. वर्ष 2000 में देश में मात्र चार प्रतिशत डीजल कारों की बिक्री हुई. 2010 में यह बढ़ कर 50 प्रतिशत हो गया था. पावर कट होने के साथ-साथ सोसायटियों में डीजल जनरेटर चालू कर दिये जाते हैं.

मुंबई के एक उद्यमी के घर का मासिक बिजली का बिल 74 लाख रुपये है. इनके मकान में एयर कंडीशन बाल रूम एवं टेम्परेचर कंट्रोल्ड स्वीमिंग पूल है. सस्ते डीजल से ऐसी बरबादी को बढ़ावा मिलता है. किसान द्वारा डीजल की जो खपत की जाती है, उसका अंतिम उपयोग भी अधिकतर ऊपरी वर्ग ही करते हैं. तथापि कमजोर वर्ग पर जो 200 रुपये का बोझ पड़ता था वह अन्याय था. बस एवं रेल के दाम बढ़ने से वह सीधे प्रभावित होता था. सरकार को चाहिए था कि इस बोझ को दूसरे टैक्सों में छूट देकर भरपाई कर दे.

डीजल पर दी जा रही सब्सिडी पर्यावरण के लिए हानिकारक थी. सेंटर ऑफ साइंस एंड इन्वायरमेंट की सुनीता नारायण बताती हैं कि पेट्रोल की तुलना में डीजल कारों द्वारा सूक्ष्म कण व नाइट्रोजन ऑक्साइड सात गुणा अधिक उत्सजिर्त किये जाते हैं. इनसे अस्थमा, ब्रांकाइटिस एवं हृदय रोग होते हैं. लंबे समय में लंग कैंसर भी हो सकता है.

सस्ता डीजल हमारी संप्रभुता पर भी आघात है. तेल कंपनियों को अधिक आयात करना पड़ता है. हम आयात के दलदल में फंसते जाते हैं. हमारी आय तेल की खपत में खत्म हो जाती है और दूसरे विकासशील देशों को मदद करने के लिए हम धन उपलब्ध नहीं करा पाते हैं. सस्ते डीजल का दुष्प्रभाव ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों के विकास पर भी पड़ता है. कुछ वर्ष पहले हरिद्वार के एक गांव में गोबर गैस का अध्ययन करने का अवसर मिला था. तब इस गांव में अनेक गोबर गैस संयंत्र ठीक-ठाक काम कर रहे थे. नब्बे के दशक में सस्ते गैस सिलेंडर उपलब्ध हो गये. किसानों को गोबर गैस बनाने का काम कठिन लगने लगा. किसानों ने गोबर गैस को त्याग दिया. इसी तरह तेल के सस्ता होने से इनका विकास नहीं हो रहा है.

डीजल के दाम में वृद्घि से गरीब पर कुछ दुष्प्रभाव अवश्य पड़ा है, परंतु इस की भरपाई के लिए गरीब द्वारा खरीदी जानेवाली दूसरी वस्तुओं पर छूट देनी चाहिए. डीजल के मूल्य में वृद्घि से पर्यावरण, देश की संप्रभुता एवं वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का विकास हमें बोनस में मिल रहा है. अत: डीजल के मूल्य न सिर्फ विश्व बाजार के मूल्य तक लाने चाहिए, बल्कि इस पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर इसकी खपत कम करनी चाहिए.


http://www.prabhatkhabar.com/node/306957


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