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न्यूज क्लिपिंग्स् | महबूबनगर जिले के हाल से सामने आया मनरेगा के 10 सालों का सच - चक्रधर बुद्ध/ राजेंद्रन नारायणन

महबूबनगर जिले के हाल से सामने आया मनरेगा के 10 सालों का सच - चक्रधर बुद्ध/ राजेंद्रन नारायणन

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published Published on Feb 8, 2016   modified Modified on Feb 8, 2016
महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून(मनरेगा ) को 10 साल पूरे हो गए हैं। एनडीए सरकार का दावा है कि इसके शासन के चलते इस योजना को लागू करने में बदलाव आया है। इस दावे की सच्‍चाई पर सवाल उठना लाजिमी ह‍ै क्‍योंकि कई जगहों पर इसे लागू करने में कमियां रही है। इस पर ध्‍यान देने के लिए हम तेलंगाना के महबूबनगर जिले के घटू मंडल का उदाहरण सामने रखते हैं। तेलंगाना सरकार ने सात जिलों के 231 मंडलों को सूखा प्रभावित घोषित किया। इसमें महबूबनगर के 64 मंडल भी शामिल हैं। सरकार ने मनरेगा के तहत एक साल में रोजगार के दिनों की संख्‍या को 100 से बढ़ाकर 150 दिन कर दिया। बावजूद इसके केवल 4 प्रतिशत परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके। जिले की 273 पंचायतों में तो काम भी शुरु नहीं हो सका। इस वित्‍तीय वर्ष में 60 से भी कम दिन बचे हैं। इससे साफ है कि 150 दिन तो दूर की कौड़ी है ज्‍यादातर परिवार 100 दिन का रोजगार भी नहीं पा सकेंगे। इस अनियमितता से क्‍या साबित होता है। कम मजदूरों के आने के दो कारण हैं एक- ग्रामीण स्‍तर पर स्टाफ की कमी और दूसरा पहले से मौजूद स्‍टाफ की उदासीनता। फील्‍ड असिस्‍टेंट या सीनियर मेट ग्रामीणों को मंडल ऑफिस से जोड़ने की मुख्‍य कड़ी होता है। मनरेगा की सफलता विश्‍वसनीय फील्‍ड ऑफिसर पर निर्भर करती है। फील्‍ड ऑफिसर की कमी से रोजगार मांगने वाले लोगों का कम पंजीकरण होता है और फलस्‍वरूप कम रोजगार होगा। इसके अत‍िरिक्‍त नए जॉब कार्ड भी जारी नहीं किए जिससे बेराेजगारी और बढ़ गई। हमारी जांच में सामने आया कि महबूबनगर जिले की 29 प्रतिशत पंचायतों में कोई फील्‍ड ऑफिसर नहीं ह‍ै। बड़ी संख्‍या में मजदूर काम के लिए आते हैं लेकिन कई अधिकारियों ने उदासीनता दिखाई। दो प्रतिशत काम पूरा होने के तथ्‍य के बावजूद मजदूरों को काम से वापस लौटा दिया गया। यहां तक कि ऐसे मामले भी हैं जिनमें मजदूरों ने काम मांगा तो उन्‍हें रसीद बुक न हाेने का बहाना बनाकर वापस भेज दिया गया। इसके चलते उन्‍हें आगे बेराेजगारी भत्‍ते से भी महरूम कर दिया गया। कई मामलों में काम की मांग नहीं मानी गई, जमीन पर कोर्इ काम नहीं हुआ लेकिन सरकारी वेबसाइटों पर सफलता की कहानियां लिख दी गई। एक अौर चिंता की बात है कि पेमेंट में बड़े स्‍तर पर देरी होती है। इससे लोगों का मोहभंग होता है। पोस्‍ट ऑफिस पेमेंट के सबसे बडे जरिया हैं। महबूबनगर में ही 52802 लोगों को 90 दिनों से भी ज्‍यादा समय तक पेेमेंट का इंतजार करना पड़ा। संक्षिप्‍त में कहें तो महबूबनगर में मनरेगा के दो स्‍तंभ काम की मांग का पंजीकरण और समय पर पेमेंट, दोनों की बुरी हालत में हैं। अब सरकार क्‍या करे। पहला कदम उठाते हुए खाली पदों को जल्‍द से जल्‍द भरें। दूसरा काम की सूची लोगों को बताई जाए। तीसरा मंडल ऑफिस में समय पर डिमांड फॉर्म आए और मजदूरों को रसीदें मिले। चौथा फील्‍ड ऑफिसर्स की जिम्‍मेदारी तय करने के लिए मस्‍टर से पंजीकरण हो। पांचवां, पेमेंट बैंकिंग के जरिए हो। साथ ही हर महीने रिव्‍यू हो। अंत में एक तटस्‍थ संगठन को यह तय करना चाहिए कि कानून के वादों को लागू करने में देरी होने पर सरकार को जुर्माना भरना पड़े। -

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