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न्यूज क्लिपिंग्स् | मेलघाट में 14000 बच्चे कुपोषित- कृष्णा शुक्ला की रिपोर्ट

मेलघाट में 14000 बच्चे कुपोषित- कृष्णा शुक्ला की रिपोर्ट

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published Published on Apr 24, 2012   modified Modified on Apr 24, 2012
मुंबई. मेलघाट में 14 हजार बच्चों के कुपोषित होने के आकड़े को जानने के बाद बांबे हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए अमरावती के जिलाधिकारी को शीघ्रता से सरकारी कल्याणकारी योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने का निर्देश दिया है।


मेलघाट में 14 हजार में से 11 हजार 61 बच्चे वजन और 3434 बच्चे ऊंचाई के लिहाज से कुपोषित पाए गए हैं। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ व न्यायमूर्ति आर. डी. धानुका की खंडपीठ ने आदिवासी इलाकों में जनकल्याण के उद्देश्य से शुरू की गई नवसंजीवन योजना के क्रियान्वयन की रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया है।


सामाजिक कार्यकर्ता पूर्णिमा उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को मेलघाट में नरेगा योजना के अमल पर हलफनामा दायर करने को कहा है। हलफनामे में सरकार को स्पष्ट करना होगा कि अप्रैल-2011 से मार्च-2012 तक नरेगा योजना में पंजीकृत कितने लोगों को रोजगार दिया गया। साथ ही किन स्थितियों के कारण लोग काम से वंचित रह गए। खंडपीठ ने नरेगा के तहत मजदूरों को दिए गए मेहनताने का भी ब्यौरा मांगा है। यदि मेहनताना बकाया है तो वह कब दिया जाएगा।


मेलघाट में जनकल्याण योजनाओं में बरती जा रही लापरवाही को जानने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आखिर क्यों ऐसी योजनाओं को लागू करने के संबंध में समर्पण की कमी नजर आती है। सरकार ने अब तक इस दिशा में क्या कदम उठाए हैं।


खंडपीठ ने इस क्षेत्र में कार्यरत समउपदेशकों के वेतन के संदर्भ में भी सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। खंडपीठ ने सरकार को मेलघाट में स्थित बाल उपचार व ग्राम बाल विकास केंद्रों की स्थिति का भी ब्यौरा देने को कहा है। इस बीच खंडपीठ ने आदिवासी लोगों के खाद्य आपूर्ति के लिए शुरू की गई खावटी कर्ज योजना को लेकर आदिवासी विभाग को नोटिस जारी किया।


इससे पहले उपाध्याय ने खंडपीठ को बताया कि मेलघाट की चिखलघाट तालुका में 150 गांव आते हैं। परन्तु नरेगा में रोजगार के लिए सिर्फ 80 गांवों को चुना गया। नरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान भी समय से नहीं किया जाता। एक साल के भीतर बाल उपचार केंद्र में सिर्फ 114 लोगों का इलाज किया गया है। जबकि सरकारी आंकड़े में 350 लोगों का इलाज हुआ है। हर साल बजट में आदिवासी इलाकों के विकास के लिए करोड़ों रुपए आवंटित किए जाते हैं।



इसमें से सिर्फ 24 हजार रुपए खर्च होने की जनकारी मिली है। इसके अलावा सरकारी आकड़ों में जो चौकानेवाली बात है वह यह है कि अप्रैल-2011 में 8 हजार बच्चे कुपोषित थे। परन्तु एक माह में यह आकड़ा 2 हजार हो गया। जब सरकारी अधिकारियों से जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। कुपोषित बच्चों की संख्या के बारे में गलत जानकारी दी जा रही है। हकीकत में वजन के लिहाज से मेलघाट में 11 हजार बच्चे जबकि ऊंचाई के हिसाब से 3434 कुपोषित हैं।


उपाध्याय ने कहा कि क्षेत्र के अलग-अलग स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत समउपदेशकों के वेतन भुगतान को लेकर सरकार गंभीर नहीं है। वहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। इस दौरान सरकारी वकील ने सरकार का रुख स्पष्ट करने व हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा। खंडपीठ ने पिछली सुनवाई में भी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। परन्तु उसका पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने मामले की सुनवाई 4 मई तक टाल दी है।

http://www.bhaskar.com/article/MH-14000-malnourished-children-in-melghat-3159429.html


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