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राजस्व की लूट

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published Published on Oct 22, 2021   modified Modified on Nov 1, 2021

-द कारवां,

आदित्य बिरला समूह और वेदांता लिमिटेड भारत में उन पहले कारपोरेट दाताओं में से थे जिन्होंने कोविड-19 महामारी राहत के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनाए गए और उन्हीं के द्वारा संचालित पीएम केयर्स फंड में भारी भरकम राशि दान दी थी. यह फंड मार्च 2020 में बनाया गया था और इसके बनने के पहले सप्ताह के भीतर ही आदित्य बिरला समूह ने 400 करोड़ रुपए तथा वेदांता ने 200 करोड़ रुपए दानस्वरूप दिए थे. इन दोनों निगमों की परोपकारिता के लिए मीडिया ने उनकी खूब सराहना की. पीएम केयर्स फंड को मोदी सरकार ने इन सवालों से बचा कर रखा है कि इसकी व्यवस्था कैसे की जा रही है? और इस मद में आने वाले दान का क्या हिसाब-किताब है? इतना ही नहीं इसे सार्वजनिक जांच के दायरे से भी बाहर रखा गया है.

सूचना अधिकार कार्यकर्ता जे. एन. सिंह ने दिसंबर 2019 में कई सरकारी एजेंसियों को सूचित किया था कि आदित्य बिरला समूह के एक हिस्से हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और वेदांता की एक सहायक कंपनी भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को) ने अपनी-अपनी एल्युमिनियम उत्पादन की मात्रा को बड़े पैमाने पर छुपाया है. सिंह के पास इस बात के काफी सबूत हैं कि एल्युमिनियम उत्पादन करने वाली दो बड़ी कंपनियों ने विस्तारित अवधियों में लाखों टन उत्पादन का सही-सही विवरण नहीं दिया है, जिनसे सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का भारी नुकसान हुआ है. सिंह के पेश किए दस्तावेजों तथा अन्य स्रोतों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध सूचनाओं की छानबीन से संकेत मिलता है कि दोनों कंपनियों ने लगभग 24000 करोड़ रुपए के उत्पादन को सरकार की नजरों से छुपाया है.

हिंडाल्को इंडस्ट्रीज उत्तर प्रदेश के रेणुकूट में स्थित है. वहां की एल्युमिनियम उत्पादन केंद्र की दैनिक पॉट-रूम उत्पादन रिपोर्ट में 1997-98 तथा 2016-17 की अवधियों के बीच कंपनी के एल्युमिनियम उत्पादन के आंकड़ों में भारी और व्यवस्थित तरीके कम दिखाने तथा नियमित रूप से हेरफेर करने के सबूत हैं. कारवां के पास उन दो दशकों से संबंधित ऐसी 100 से अधिक उत्पादन रिपोर्टें हैं. उन रिपोर्टों में एक बड़े हिस्से में कम गिनने तथा गिनती मिटाए जाने के साक्ष्य स्पष्ट दिखते हैं. रेणुकूट के उत्पादन आंकड़ों की ये विसंगतियां इसकी निगरानी-निरीक्षण के लिए जवाबदेह सरकारी एजेंसियों के कामकाज में चूक का संकेत देती हैं. इनकी रिपोर्ट भारतीय खनन ब्यूरो के स्थानीय केंद्रीय उत्पाद तथा सेवा कर प्रभाग तथा खुद हिंडाल्को द्वारा की गई है. रेणुकूट की पिछले दो दशकों की कुल उत्पादन रिपोर्ट और केंद्र द्वारा 1997 से सार्वजनिक रूप से बताई गई उत्पादन क्षमता के बीच बहुत अंतर है. 20 लाख टन से अधिक के एल्युमिनियम उत्पादन का यह अंतर 15231 करोड़ रुपए मूल्य के बराबर है. उपलब्ध दस्तावेज यह भी खुलासा करते हैं कि एल्युमिनियम उत्पादन के दो उच्च मूल्य वाले उप-उत्पाद वैनेडियम स्लज तथा गैलियम के उत्पादन के जो विवरण हिंडाल्को ने दिए हैं, उनमें भी स्पष्ट विसंगतियां हैं.

छत्तीसगढ़ के कोरबा में बाल्को संयंत्र के उत्पादन आंकड़े में भी गड़बड़ी है. इस बारे में स्थानीय केंद्रीय उत्पाद और सेवा कर विभाग, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड और भारतीय खनन ब्यूरो द्वारा रिपोर्ट की गई है. इन रिपोर्टों से खुलासा होता है कि कम से कम 2006-07 के बीच उत्पादन कंपनी की मान्य क्षमता से अधिक हुआ था. उस दौरान आधिकारिक कुल उत्पादन की पारंपरिक पद्धति में भी परिवर्तन (पूर्वव्यापी संशोधन) किया गया, जो एक बार फिर सरकार की निगरानी में चूक की तरफ इशारा करता है. ऐसी विसंगतियों के विश्लेषण से 2009-10 तथा 2016-17 की अवधि के सात में से पांच वर्षों में 8674 करोड़ रुपए के बराबर के उत्पादन की कम रिपोर्ट किए जाने का संकेत मिलता है.

दोनों ही मामलों में वास्तविक कुल छिपाव की मात्रा का निर्धारण मौजूदा सूचना के आधार पर नहीं किया जा सकता. इसके पूरे आंकलन के लिए सरकारी जांच एजेंसियों द्वारा व्यापक जांच किए जाने की जरूरत है. हिंडाल्को और बाल्को को उत्पाद प्राधिकारियों के समक्ष उत्पादन रिटर्न फाइल करनी होती है और उत्पाद शुल्क इन दस्तावेजों की संख्याओं के आधार पर उत्पादन के स्रोत पर लगाया जाता है. संबंधित वर्षों के दौरान अनराट एल्युमिनियम पर उत्पाद दरों में अस्थिरता रही है, लेकिन औसतन वे 10 प्रतिशत से अधिक रहे हैं. अनुमानित असूचित उत्पादन के मूल्य पर 10 प्रतिशत की दर भी लगाए जाने से हिंडाल्को द्वारा न्यूनतम 1500 करोड़ रुपए से अधिक की तथा बाल्को द्वारा 860 करोड़ रुपए से अधिक की उत्पाद शुल्क चोरी का पता चलता है. इन अनुमानों में कोई भी उपकर शामिल नहीं है, जो इस उत्पादन पर भी लगाया गया होता या इससे अर्जित आय पर कोई कर लगाया गया होता.

वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार रह चुके एक वित्त विशेषज्ञ के अनुसार सरकारी बकाया से बचने के लिए उत्पादन कम करके बताना भारत के खनिज उद्योगों में प्रचलन है. इन दो प्रमुख एल्युमिनियम कंपनियों के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा रखे गए उत्पादन रिकार्डों में बार-बार की अनियमितताएं निगरानी और जवाबदेही की उद्योग व्यापी समस्या की ओर इशारा करती हैं. ये सरकारों के बार-बार बदले जाने के बीच विविध एजेंसियों द्वारा जानबूझकर त्रुटिपूर्ण रिपोर्टिंग की जाने की संभावना की ओर भी इशारा करती हैं, जो कंपनियों को बिना किसी परिणाम के उत्पादन के आंकड़ों में हेरफेर करते रहने का मौका देती है.आदित्य बिरला समूह और वेदांता लिमिटेड, दोनों के ही पिछली और वर्तमान सरकारों तथा सभी राजनीतिक दलों से घनिष्ठ संबंध रहे हैं.

(2)

विंध्य क्षेत्र में बसा हुआ रेणुकूट उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पूर्वी कोने में सोनभद्र जिले में स्थित है जिसकी सीमाएं झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से लगती हैं. यह हिंडाल्को इंडस्ट्रीज का ऐतिहासिक घर है, जिसने 1960 के दशक की शुरुआत में लगभग 20000 टन सालाना की क्षमता के साथ उद्योगपति घनश्यामदास बिरला की अगुवाई में अपना पहला एल्युमिनियम प्लांट लगाया था. आज हिंडाल्को की पहचान लगभग 1.3 मिलियन टन सालाना के उत्पादन के साथ 18 बिलियन डॉलर वाली कंपनी की है. ऐसा विभिन्न उत्पादन केंद्रों तथा सरकार द्वारा एल्युमिनियम की अयस्क बॉक्साइट सोर्सिंग के लिए कंपनी के विशिष्ट उपयोग के लिए लीज पर दिए गए आबद्ध (कैप्टिव)खदानों की बदौलत संभव हो पाया है. रेणुकूट स्थित हिंडाल्को परिसर एक हजार से अधिक एकड़ में फैला हुआ है और इसमें हजारों कर्मचारियों के लिए बसाया गया एक उपनगर (टाऊनशिप) भी शामिल है.

69 वर्षीय जे एन सिंह रेणुकूट के ही रहने वाले हैं, जिन्होंने 1990 के दशक के मध्य में हिंडाल्को परिसर में काम किया- पहली बार उस कंपनी के साथ जिसे इंजीनियरिंग सेवाओं का ठेका दिया गया था और फिर बाद में एक स्वतंत्र ठेकेदार के रूप में. सिंह ने मुझे बताया कि उन्होंने हिंडाल्को को लगभग पचास पॉट सेल्स की आपूर्ति की थी. इसका उपयोग एल्युमिनियम को गलाने के लिए किया जाता था. उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा कि हिंडाल्को की एक इकाई ‘अपनी स्वीकृत क्षमता से बहुत अधिक मात्रा में एल्युमिनियम का उत्पादन कर रही है. सिंह ने 1997 में नौकरी छोड़ दी और कंपनी के गलत कारनामों का पर्दाफाश करने के लिए सूचनाएं जुटाना शुरू कर दिया.

रेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं..  मीता अहलावत / डीटीईरेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं..  मीता अहलावत / डीटीई
रेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं. मीता अहलावत / डीटीई
इस तैयारी के साथ सिंह ने 2002 में एक जनहित याचिका के जरिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसमें कंपनी के घपलों को उजागर किया गया था और कंपनी के प्रचालनों की जांच की मांग की गई थी. विभिन्न पीठों से गुजरने के बाद आखिरकार भारत के तात्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी एन किरपाल, अरिजित पसायत तथा के जी बालकृष्णन की तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने याचिका की सुनवाई की. पीठ ने सुनवाई के दौरान यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह “बदनीयती से भरी” है तथा सर्वोच्च न्यायालय “केस रजिस्टर करने वाली एजेंसी नहीं है.” न्यायाधीश ने यह भी कहा कि सिंह “न्यायालय में किसी और की लड़ाई लड़ रहे हैं” जिसका संदर्भ जिंदल एल्युमिनियम से था, जिसने लगभग उसी समय प्रकाशित विज्ञापनों में हिंडाल्को के खिलाफ घपले के ऐसे ही आरोप लगाए थे.

सिंह ने कहा कि याचिका का जिंदल एल्युमिनियम के हिंडाल्को के खिलाफ विज्ञापन अभियान से कोई लेना-देना नहीं था, ये विज्ञापन संयोग से उसी दौरान प्रकाशित किए गए थे जब वे सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने मुझे दुखी होकर बताया कि “हमारे संविधान के सर्वोच्च संरक्षक (सर्वोच्च न्यायालय) को मामले के गुण-दोषों पर गौर करना चाहिए था.” उन्होंने कहा कि “याचिका खारिज किए जाने ने हिंडाल्को को बिना किसी बुरे नतीजे के डर के अपनी धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधियों को जारी रखने में बढ़ावा ही किया.”

2000 के दशक के शुरू में, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की वार्षिक रिपोर्टों में प्रत्येक वर्ष रेणुकूट में उत्पादित कुल एल्युमिनियम के आंकड़े शामिल किए जाते थे. वित्त वर्ष 2003-04, जब सर्वोच्च न्यायालय ने सिंह की याचिका खारिज की थी, के बाद से यह प्रक्रिया रुक गई. उसके बाद से कंपनी की वार्षिक रिपोर्टों में उसके विविध स्थानों से संयुक्त रूप से एल्युमिनियम उत्पादन के आंकड़े ही प्रदर्शित किए जाने लगे.


हिंडाल्को के रेणुकूट प्रचालन केंद्रीय जीएसटी तथा केंद्रीय उत्पाद प्रभाग-मिर्जापुर, जिसे 2017 तक केंद्रीय उत्पाद एवं सेवा कर प्रभाग, मिर्जापुर कहा जाता था, के रेणुकूट रेंज के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. कंपनी की अपनी वार्षिक रिपोर्टों में उत्पादन के बताए गए आंकड़ों, खासकर रेणुकूट के आंकड़ों में लगातार और बहुत ज्यादा अंतर है, जैसाकि 2016 तथा 2017 (देखें टेबल 1) में आरटीआई आवेदनों के जवाब में सीईएसटी प्रभाग द्वारा प्रकट आंकड़ों से जाहिर हुआ. वर्ष 1999-2000 के लिए, सीईएसटी प्रभाग के आंकड़े 2000-2001 के लिए लगभग 12,000 टन उत्पादन की ओवर रिपोर्टिंग के संकेत देते हैं, इसके विपरीत सीईएसटी प्रभाग के आंकड़े लगभग 20000 टन की अंडर रिपोर्टिंग की ओर इंगित करते हैं. कंपनी को भारतीय खनन ब्यूरो (जो खनन मंत्रालय के तहत आता है) को भी अपने उत्पादन केंद्र के उत्पादन के बारे में रिपोर्ट करनी होती है. इनका प्रकाशन भारतीय खनिज ईयर-बुक में किया जाता है, जिसे आईबीएम द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है. रेणुकूट के लिए आईबीएम के आंकड़े भी सीईएसटी प्रभाग के आंकड़ों तथा उपलब्ध वार्षिक रिपोर्टों में प्रदर्शित आंकड़ों से काफी अलग हैं और कई वर्षों के लिए उनमें भिन्नता हजारों टन की है.

ये असंगत आंकड़े रेणुकूट केंद्र के वास्तविक उत्पादन के बारे में जवाब देने की बजाए सवाल ही खड़े करते हैं. इसी प्रकार, कई वर्षों तक तथा कई स्रोतों द्वारा रिपोर्ट किए गए असंगत आंकड़ों के साथ रेणुकूट में हिंडाल्को की उत्पादन क्षमता को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय खनिज ईयरबुक 2013 में रेणुकूट केंद्र की संस्थापित वार्षिक उत्पादन क्षमता 345000 टन बताई गई थी. फिर भी, 2011 में हिंडाल्को ने रेणुकूट में आधुनिकीकरण तथा विस्तार परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी को लेकर एक आवेदन किया था, जिसमें उसने दावा किया कि वह वर्तमान 356000 टन के एल्युमिनियम उत्पादन को बढ़ा कर प्रति वर्ष 472000 टन तक ले जाएगी. 2018 में, जब कंपनी ने इस मंजूरी की वैधता को आगे बढ़ाने के लिए आवेदन दिया जिसमें बताया कि उसने प्रति वर्ष 420000 टन की संवर्द्धित क्षमता अर्जित कर ली है. हिंडाल्को ने अपनी वेबसाइट पर, रेणुकूट केंद्र के लिए सालाना 345000 टन की क्षमता ही दर्ज कराई है. उसकी वार्षिक रिपोर्ट में अलग से रेणुकूट की उत्पादन क्षमता के बारे में उल्लेख नहीं है जैसाकि वे प्रोडक्शन आउटपुट को लेकर करते हैं, जहां वे केवल कंपनी के समस्त एल्युमिनियम उत्पादन का महज संयुक्त आंकड़ा देते हैं.

यह विश्वास करने के पर्याप्त कारण हैं कि ये सभी संख्याएं बेमानी हैं और बहुत कम बताई गई हैं. जुलाई 1998 में इंडिया टुडे (हिंदी) में प्रकाशित एक विज्ञापन परिशिष्ट में, हिंडाल्को की एल्युमिनियम उत्पादन क्षमता सालाना 450000 टन बताई गई थी. (देखें दस्तावेज 1) उस समय रेणुकूट परिसर कंपनी का एकमात्र एल्युमिनियम उत्पादन केंद्र था.

दस्तावेज 1: विज्ञापन सप्लीमेंट, इंडिया टुडे (हिन्दी), जुलाई 1998. दस्तावेज 1: विज्ञापन सप्लीमेंट, इंडिया टुडे (हिन्दी), जुलाई 1998. 
दस्तावेज 1: विज्ञापन सप्लीमेंट, इंडिया टुडे (हिन्दी), जुलाई 1998
यह तर्क से परे है कि हिंडाल्को ने अपने केंद्र की पूर्ण क्षमता का दोहन करना नहीं चाहा. 1997 से अगले दो दशकों में कंपनी की एल्युमिनियम मांग निरंतर बढ़ती रही है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि हिंडाल्को ने इस अवधि के दौरान कई नए उत्पादन केंद्र खोले हैं और रेणुकूट तथा अन्य जगहों पर लगातार उत्पादन क्षमता को परिवर्द्धित (अपग्रेड) किया है. अगर रेणुकूट की क्षमता 1998 में पहले से ही 450000 टन थी, हिंडाल्को के बाद के विस्तार तथा अपग्रेडेशन ने निश्चित रूप से वास्तविक क्षमता को और अधिक बढ़ाया होगा, जो कंपनी द्वारा पर्यावरण मंजूरी के विस्तार के लिए उसके 2018 के आवेदन में दावा किए गए महज 420000 टन सालाना की तुलना में और अधिक होगा.

अगर इसे छोड़ भी दिया जाए और 1997 से प्रति वर्ष 450000 टन की स्थिर क्षमता पर गौर किया जाए तो सीईएसटी प्रभाग को प्रस्तुत आंकड़ों से उत्पादन को लेकर बहुत बड़ी संख्या में, दो दशकों में कुल 2012563 टन उत्पादन की कम रिपोर्टिंग किए जाने का संकेत मिलता है. रुपए के लिहाज से वैश्विक कीमतों में मूल्यांकन करने पर इससे 15231 करोड़ रुपए की बेहिसाबी राशि या लगभग 3 अरब रुपए (देखें टेबल 2) का संकेत मिलता है.

एल्युमिनियम का उत्पादन दो चरणों में होता है. पहले एल्यूमिनियम ऑक्साइड या एल्युमिना निकालने के लिए खनन किए गए बॉक्साइट को बेयर प्रक्रिया से गुजारा जाता है. इसके बाद, एल्युमिना को विशेष साल्वेंट में पिघलाया जाता है और इलेक्ट्रोलाइसिस का उपयोग करके एल्युमिनियम को अलग किया जाता है.

गलाने की यह प्रक्रिया पॉट नाम के बड़े कंटेनरों, जो लाइन में एक दूसरे से जुड़े होते हैं, में उच्च तापमान पर होती है. जैसे ही पिघला हुआ एल्युमिनियम पॉट में जमा हो जाता है, प्रत्येक पॉट को पारंपरिक रूप से दिन में कई बार थपथपाया जाता है, और धातु ठोस रूप में ढल जाता है.

रेणुकूट केंद्र में दो एल्युमिनियम स्मेलटिंग प्लांट हैं-एक में तीन लाइनें हैं तथा दूसरे में आठ लाइनें हैं, और दोनों के बीच 2,038 पॉट हैं. पॉट लाइन बड़े भवनों में स्थित हैं, जिनके नाम पॉट रूम हैं और आउटपुट को एक फोरमैन के सुपरविजन में तीन शिफ्टों -ए, बी तथा सी में दैनिक पॉट रूम उत्पादन रिपोर्ट्स में रिकॉर्ड किया जाता है. उत्पादन रिपोर्ट को कार्बन पेंसिल का उपयोग करके भरा जाता है, जिससे बाद में उत्पादन की संख्या में आसानी से धोखाधड़ी की जा सकती है.

स्रोत : indexmundi.com, mcxindia.comस्रोत : indexmundi.com, mcxindia.com
स्रोत : INDEXMUNDI.COM, MCXINDIA.COM
अगस्त 2018 तक रेणुकूट में फोरमैन रहे कृपा शंकर दुबे ने मुझे बताया, “मेरा काम उत्पादन को नोट करना और पेंसिल से विधिवत दर्ज करके सत्यापित करना था, जिसे बाद में वे कम उत्पादन दिखाने के लिए मिटा देते थे. ‘इसे अंतिम प्रविष्टि के लिए उत्पादन विभाग को पॉट रूम रिपोर्ट भेजे जाने के बाद किया जाता है.”

कारवां को प्राप्त दैनिक पॉट रूम उत्पादन रिपोर्ट में प्रविष्टियों में हेरफेर किए जाने के स्पष्ट प्रमाण हैं. 1 फरवरी 1998 को पॉट लाइन 7, रूम एम/एन के लिए प्रविष्टियों को लें. आश्चर्यजनक रूप से, कुछ खास उदाहरणों को छोड़कर समन प्रकार के विवरणों के साथ इस तिथि के लिए रिपोर्ट के दो वर्जन हैं. (दस्तावेज 2 एवं 3 देखें). एक वर्जन में, कॉलम ‘टैप किए गए पॉट की संख्या में शिफ्ट ए के लिए प्रविष्टियां चार पॉट नंबरों-1,2,3 और 4 को इंगित करती हैं-जिनके चारों तरफ सर्किल हैं. दूसरे वर्जन में, ये पॉट नंबर दिखाई नहीं देते. टैप किए गए पॉट का एक मिलान एक वर्जन में कुल 23 प्रदर्शित करता है लेकिन दूसरे में 19 प्रदर्शित करता है-यह अंतर सर्किल किए गए पॉट की संख्या से मेल खाता है. शिफ्ट बी के लिए भी इसी तरह होता है-एक वर्जन में सर्किल किए गए पॉट की संख्याएं दूसरे में दिखाई नहीं देतीं. इसके अतिरिक्त, एक वर्जन में प्रविष्टियों की पूरी लाइन मिटा दी गई है. यहां भी, टैप किए गए पॉट की संख्या-एक वर्जन में 34, दूसरे में 21-सभी वर्जनों में दर्ज या छोड़े गए पॉट की संख्या का अनुसरण करती है.

प्रविष्टियों का एक सेट एक वर्जन में शिफ्ट सी के तहत लेबल किया गया है, जबकि दूसरे में शिफ्ट बी के लिए लेबल किया गया है, और इसमें सभी विवरणों को बदला हुआ प्रदर्शित किया गया है. टैप किए गए पॉट की संख्या एक वर्जन में 10 तथा दूसरे में 17 प्रदर्शित की गई है.

इन सभी बदलावों के परिणामस्वरूप, जहां एक-एक वर्जन दिन के लिए उत्पादित एल्युमिनियम की मात्रा का कुल योग 99.600 टन प्रदर्शित करता है, दूसरा वर्जन 90.600 टन प्रदर्शित करता है जो 9 टन का अंतर है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


महेश सी डोनिआ, https://hindi.caravanmagazine.in/business/aluminium-under-reporting-hindalco-balco-aditya-birla-vedanta-hindi


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