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न्यूज क्लिपिंग्स् | कर्ज की जंजीर तोड़ने और राजस्व बढ़ाने के लिए मोदी सरकार इस बजट में कर सकती है दो उपाय

कर्ज की जंजीर तोड़ने और राजस्व बढ़ाने के लिए मोदी सरकार इस बजट में कर सकती है दो उपाय

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published Published on Jan 10, 2022   modified Modified on Jan 14, 2022

-दी प्रिंट,

जनवरी का महीना आते ही अगले केंद्रीय बजट के बारे में चर्चाएं शुरू हो जाती हैं. जैसा कि हर मामले में होता है, निरर्थक बातों को परे रखकर काम की बातों पर ध्यान देना ही बेहतर होगा. शुरुआत सरकारी कर्ज से करें, जो महामारी के कारण बड़े घाटे के चलते तेजी से बढ़ गया है. राजस्व की हानि के चलते खर्चों से बचना मुश्किल था, हालांकि वे अपेक्षाकृत रूप से सीमित ही रहे; फिर भी उसके नतीजे अभी कायम हैं. सरकारी कर्ज (केंद्र और राज्यों के) जीडीपी के 90 फीसदी के बराबर पहुंच रहे हैं. महामारी से पहले यह करीब 70 फीसदी के बराबर था, जबकि अपेक्षित स्टार 60 फीसदी माना जाता है.

इसके कारण ब्याज का बोझ बढ़ रहा है, जो महामारी से पहले सरकारी आवक (नये उधार को छोड़कर) के 34.8 फीसदी के बराबर था. पिछले एक दशक में इस आंकड़े में ज्यादा फर्क नहीं आया था. 2011-12 में यह 34.6 फीसदी था. लेकिन चालू वर्ष में, बजट अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा 40.9 फीसदी है. अगर यह अनुपात 34.8 फीसदी पर स्थिर रहता तो सरकार लगभग 1.2 ट्रिलियन (12 खरब रुपये) बचा लेती या कार्यक्रमों पर खर्च कर सकती थी. ब्याज दर बढ़ने ही वाले हैं, तो यह बोझ और भारी ही होने जा रहा है. भविष्य के लिए यह महंगा मामला होगा और खर्चों पर लगाम लगवाएगा.

इसके अलावा, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में जीडीपी का बड़ा हिस्सा आम तौर पर टैक्स राजस्व के रूप में सरकार को मिलता है जो स्वाथ्य सेवाओं, शिक्षा, जनकल्याण कार्यक्रमों, इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रतिरक्षा पर खर्च होता है. भारत में 10 साल से टैक्स राजस्व की केंद्रीय उगाही का स्तर जीडीपी के 10.2 प्रतिशत के बराबर बना हुआ है. इस साल के लिए यह आंकड़ा 9.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है लेकिन इसमें वृद्धि हो सकती है क्योंकि टैक्स उगाही अच्छी हुई है. लेकिन टैक्स-जीडीपी अनुपात लंबे समय से स्थिर रहने के कारण भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा, और प्रतिरक्षा पर जरूरत से कम खर्च होता रहा है.

इस सबसे आपको यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि बजट भाषणों में सरकारी कार्यक्रमों पर बड़े खर्च करने की जो बातें की जाती हैं वे बस भरमाने वाली बातें हैं. अगर जीडीपी के मुक़ाबले राजस्व और कुल खर्चे का अनुपात बढ़ा नहीं है, और अगर कुछ कार्यक्रमों को ज्यादा पैसे मिल रहे हैं तो जाहिर है कि दूसरे कार्यक्रमों को मिल रहे हैं.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


टी एन नायनन, https://hindi.theprint.in/opinion/union-budget-gdp-gst-budget2022-tax/261944/


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