Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | राेजगार मिले तो पलायन रुके-- विवेक त्रिपाठी

राेजगार मिले तो पलायन रुके-- विवेक त्रिपाठी

Share this article Share this article
published Published on Dec 31, 2015   modified Modified on Dec 31, 2015
प्रत्येक व्यक्ति को अपना मकान सुखद अनुभूति देने वाला होता है। धनी वर्ग के सामने अपना मकान बनाना किसी समस्या की भांति नहीं होता क्योंकि उसके पास धन की कमी नहीं होती। मध्य वर्ग अपनी जीवन भर की कमाई से आशियाना बनाने का प्रयास करता है, लेकिन निम्न वर्ग के लिए यह सपना ही रहता है। आज तक इस सपने में सिर्फ राजनीति ही होती रही है। इसके लिए किसी सरकार ने कोई ठोस योजना नहीं बनाई है।
 
गांवों से रोजगार के लिए शहर आने वाले झुग्गी बनाकर रहने लगते हैं। वह रेलवे पटरी के किनारे रहने के लिए मजबूर हैं। चुनावों के दौरान ही झुग्गियों को नये मकान में तबदील करने की बात होती है। खेती की लागत बढ़ने के कारण गांव छोड़ने पर मजबूर लोगों पर शायद किसी सरकार का ध्यान नहीं गया। वे रोजी-रोटी की तलाश में गांव का त्याग करते हैं। एक दिन वहां से उजाड़ दिये जाते हैं।
 
अगर आंकड़ों पर जाएं तो दिल्ली में लगभग 700 एकड़ पर झुग्गियां बसी हुई हैं, जिनमें लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। 90 प्रतिशत झुग्गियां सरकारी जमीन पर हैं। इन बस्तियों में 974329 पुरुष और 811061 महिलाएं भी दिल्ली की झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर हैं। 46 प्रतिशत एमसीडी और पीडब्ल्यूडी की जमीनों पर रहते हैं। 28 प्रतिशत लोग रेलवे की जमीन पर झोपड़ी बना कर रहते हैं। दिल्ली शहरी विकास बोर्ड के अनुसार 685 बस्तियां बनी हुई हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जनसंख्या लगभग 4,25,78,150 है।
 
यूएनडीपी की ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2009 में कहा गया है कि मुम्बई में 54.1 प्रतिशत , दिल्ली में 18.9 प्रतिशत, कोलकाता में 11.72 प्रतिशत तथा चेन्नई में 25.6 प्रतिशत लोग झुग्गियों में रहते हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि 2006-07 में हर एक मुम्बईकर साल में 65,361 रुपए कमाता था, जबकि पूरे महाराष्ट्र का औसत 41,331 रुपए और पूरे देश की औसत कमाई 29,328 रुपए हुआ करती थी। मुम्बई सिर्फ देश में ही नहीं, पूरे विश्व का इकलौता शहर है जहां पर झोपड़ों में रहने वालों की संख्या बाकी लोगों की तुलना में सबसे अधिक है।
 
अपने देश के दूसरे शहरों की बात करें तो दिल्ली में 18.9 प्रतिशत, कोलकाता में 11.72 प्रतिशत और चेन्नई में 25.6 प्रतिशत लोग झोपड़ियों में रहते हैं। इन आंकड़ों पर सरकार को संजीदगी से ध्यान देने की जरूरत है। झोपड़े में रहने वाले लोगों की याद सिर्फ चुनाव घोषणा पत्र बनाते समय आती है। इनमें रहने वाले लोग कई प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं। वहां पर सबसे ज्यादा पानी की समस्या होती है। अच्छा पानी न होने की वजह से वहां पर बीमारियां फैलती हैं।
 
वहां पर रहने वाले लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि उनके राशन कार्ड भी नहीं बन पाते। इस कारण से उन्हें कई प्रकार की हानि होती है। सबसे बड़ी समस्या तो शौचालय की होती है। महिलाओं को इंतजार करना पड़ता है या खुले में शौच जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
 
इन समस्याओं का स्थानीय स्तर पर हल ढूंढना होगा। आसपास के क्षेत्र में अस्पताल, शौचालय और पाठशाला का इंतजाम करवाना चाहिए। इन लोगों के लिए वहीं रोजगार की सुविधाएं मुहैया करायी जायें तो यह पलायन रुकेगा। गांवों में रोजगार के साधन ज्यादा से ज्यादा उपलब्ध कराने होंगे, जिससे लोग ऐसी बस्ती में आने को कम मजबूर हों। अगर लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं तो उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा और भोजन की जिम्मेदारी सरकारों को तय करनी पड़ेगी।
सरकारों को सिर्फ चुनाव घोषणा पत्र के लिए झुग्गी-झोपड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बल्कि उन पर ठोस रणनीति बनाकर काम करना होगा। दीर्घकालिक योजना के तहत गांव से शहरों की ओर पलायन रोकने का प्रयास करना होगा। पलायन तभी रुकेगा जब ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। इसके लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कारगर प्रयास करने होंगे।

http://dainiktribuneonline.com/2015/12/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close