Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | विद्रोह की जमीन पर एक गांधीवादी- रामचंद्र गुहा

विद्रोह की जमीन पर एक गांधीवादी- रामचंद्र गुहा

Share this article Share this article
published Published on Dec 10, 2018   modified Modified on Dec 10, 2018
भारत के तीन ही राज्य हैं, जहां मेरा आज तक जाना नहीं हुआ। नगालैंड इनमें से एक है। अगली फरवरी में एक सामाजिक कार्यकर्ता नटवर ठक्कर के निमंत्रण पर वहां जाने का कार्यक्रम बना था, जिनके साथ पत्राचार तो काफी रहा, लेकिन मुलाकात कभी नहीं हुई। 1932 में पश्चिमी भारत में जन्मे नटवर भाई प्रख्यात गांधीवादी और देशभक्त काका साहब कालेलकर के संपर्क में आए और युवावस्था में ही अपना जीवन समाजसेवा को समर्पित कर दिया। 1955 में वह नगालैंड गए और वहां के मोकोकचुंग कस्बे से लगभग 30 मील दूर चुचुइमलांग गांव में एक आश्रम की स्थापना की।

नटवर ठक्कर के नगालैंड जाने के अगले साल ही वहां अंगमा जापू फिजो के नेतृत्व में विद्रोह भड़क उठा, जिसके दमन के लिए सेना भेजी गई। नटवर भाई ने एक नगा महिला लेंटिन एओ से विवाह किया और उनके साथ 40 वर्षों का कठिन संघर्ष भरा जीवन जिया। इस युगल ने वहां कुटीर उद्योगों की स्थापना के साथ ही नगा युवकों के बीच व्यावसायिक प्रशिक्षण पर खासा काम तो किया ही, एक डेयरी भी शुरू की और सीरीकल्चर व मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन दिया।

नटवर भाई के गुजराती भाषी दोस्त और तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई नवंबर 1978 में नगालैंड के इस गांधी आश्रम को देखने गए थे। चार साल बाद ही एक भावी प्रधानमंत्री भी यहां आए। यह थे प्रख्यात अर्थशास्त्री और योजना आयोग के तत्कालीन सदस्य मनमोहन सिंह। नटवर भाई और उनके साथियों के साथ एक दिन बिताने के बाद मनमोहन सिंह ने लिखा- ‘यह आश्रम महत्वपूर्ण विकेंद्रीकृत विकास कार्यक्रमों की सफलता की दिशा में अद्भुत काम कर रहा है। व्यक्ति की मौलिक पहचान और आत्मसम्मान से समझौता किए बिना, विकास को मानवीय चेहरा देते हुए उत्पादकता में सतत सुधार अत्यंत चुनौतीपूर्ण काम है। यहां मशीन और मानव श्रम के बीच अद्भुत संतुलन देखने को मिला।'

मैंने पहली बार नटवर ठक्कर के बारे में अस्सी के दशक में सुना, जब ब्रिटेन में जन्मे भारतीय मानव विज्ञानी वेरियर एलविन की जीवनी पर काम कर रहा था। गांधी से प्रभावित एलविन का खासा वक्त साबरमती आश्रम में बीता। हालांकि बाद में मध्य भारत के आदिवासियों के बीच काम करते हुए भोजन व शराब पर गांधीजी के शुद्धतावादी नजरिए ने उन्हें इस मामले में गांधी से थोड़ा दूर कर दिया। एलविन के दस्तावेजों में मुझे 1959 में लिखा एक पत्र मिला, जिसमें वह नगालैंड के इस ‘गांधीवादी' आश्रम की यात्रा के दौरान पोर्क के स्वाद और राइस बियर की रस लेकर चर्चा करते हैं।

अफसोस है कि ठक्कर का इसी अक्तूबर में निधन हो गया और मैं उनसे मिलने से वंचित रह गया। हालांकि नगालैंड की मेरी जिस यात्रा की भूमिका उन्होंने बनाई थी, वह रूपा चेनाई की नई किताब अंडरस्टैंडिंग इंडियाज नॉर्थवेस्ट-अ रिपोर्टर्स जर्नल को पढ़ते हुए फिर से ताजा हो गई है। इसका सबसे लंबा अध्याय नगालैंड पर ही है। रूपा खासी संवेदना के साथ यह महसूस करती हैं कि विद्रोहियों व सेना के बीच के संघर्ष की कैसी कीमत चुकानी पड़ी है? किस तरह विकास अवरुद्ध हुआ और लोगों ने कैसी मानसिक व शारीरिक यंत्रणाएं झेलीं?

रूपा केंद्र की आती-जाती सरकारों की नीतियों की ठीक ही आलोचना करती हैं, जिन्होंने वहां की परिस्थितियों व सामाजिक विशिष्टताओं को समझे बगैर किस तरह से एक तयशुदा ‘भारतीय' शिक्षा का रूप उन पर थोपा, जो विकास और सहायता के नाम पर व्यापारियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के भ्रष्ट गठजोड़ को बढ़ावा देने वाला था। रूपा लिखती हैं कि वहां की आम सड़कों, नालियों व इमारतों की बदहाली और आलीशान निजी महलनुमा बंगले व भरी हुई जेबें गवाह हैं कि विकास के नाम पर आए धन की बंदरबांट हुई और वहां एक कुलीन वर्ग उभरा। यह सब नगा ग्रामीणों की कीमत पर हुआ है, जो इस ‘समृद्धि' में कहीं नहीं हैं।

जयप्रकाश नारायण 1964-65 में भारत सरकार और विद्रोहियों के बीच सुलह की संभावनाओं के साथ नगालैंड गए थे। पहाड़ियों और घाटियों में यात्रा करते हुए स्थानीय लोगों के समतावादी आचरण ने उन्हें खासा प्रभावित किया। पटना लौटने के बाद नगालैंड में शांति प्रयास शीर्षक लेक्चर में जेपी ने कहा- ‘यहां (भारत) के लोग नगालैंड वालों को असभ्य समझते हैं, लेकिन कोई वहां जाए, तो समझे कि वे कितना आगे हैं?... मोकोकचुंग कस्बे के पास एक गांव है उगमा। शायद नगालैंड का सबसे बड़ा गांव। लगभग चार हजार की आबादी है। एक विशाल गिरिजाघर है, जिसमें पांच हजार लोग बैठ सकते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि इसका निर्माण ग्रामीणों ने अपने श्रम से किया है। बाहर का न तो सामान इस्तेमाल हुआ, न विशेषज्ञता। चर्च ही नहीं, कई स्कूल भवन भी इन लोगों ने खुद बनाए। ये सारे बहुत खूबसूरत हैं। पर सबसे ऊपर और सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इनकी सेवा भावना। बीए-एमए पास युवा भी श्रम में शर्म नहीं करता।... भारत में कहीं भी शिक्षित लोगों में पाई जाने वाली खामियां इनमें नहीं मिलेंगी। हम (गांधीवादी) ‘प्राथमिक शिक्षा' के जुमले के तहत जो पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वह वहां पहले से पढ़ाई का हिस्सा है।... नगाओं का सबसे बड़ा गुण दैनिक जीवन में श्रम की गरिमा है, जिससे हम सीख सकते हैं।'

रूपा की किताब जेपी के इन शब्दों के 50 साल के भी बाद आई है। फिर भी यह देखना सुखद है कि दशकों की खूनी हिंसा से उपजे असुरक्षा बोध और राज्य पोषित भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों से आए नैतिक पतन के बावजूद नगा समाज में सांप्रदायिक सौहार्द और एकजुटता वैसी ही मजबूत है। रूपा नगा गांवों में सिंचाई प्रबंधन की बात भी करती हैं कि किस तरह पत्थरों और पाइपों के संयोग से न सिर्फ पानी लेने, बल्कि प्रवाह को बदलने और नियंत्रित करने का भी काम हुआ है।
नटवर ठक्कर के जीवन का ध्येय नगाओं और केंद्र सरकार के बीच एक सम्मानजनक सेतु बनाना था। उन्होंने नगा संस्कृति और आचारों के सम्मान के साथ सुलह की बात की, न कि उनकी गर्वीली परंपराओं को ताक पर रखकर किए गए चंद आकलनों के आधार पर। नटवर ठक्कर अब नहीं हैं, लेकिन उम्मीद करता हूं कि उस राज्य को, जिसे उन्होंने अपना बनाया और उनके बनाए आश्रम को जल्द ही देख पाऊंगा। आश्वस्त हूं कि वहां अब भी पोर्क और राइस बियर परोसे जाते होंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-opinion-hindustan-column-on-8-december-2303237.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close