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न्यूज क्लिपिंग्स् | श्रीनगर जल विद्युत परियोजना हुई तबाही- श्रीनगर से सीताराम बहुगुणा

श्रीनगर जल विद्युत परियोजना हुई तबाही- श्रीनगर से सीताराम बहुगुणा

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published Published on Jun 26, 2013   modified Modified on Jun 26, 2013
अलकनन्दा नदी में आयी विनाशकारी बाढ़ ने श्रीनगर में भी अपना तांडव दिखाया। नगर के एक बड़े हिस्से को पूरी तरह से बर्वाद कर दिया। बाढ़ ने एसएसबी अकादमी का परिसर, आईटीआई परिसर बुरी तरह तबाह हो गया। 70 आवासीय भवनों में रहने वाले सौ से अधिक परिवार बेघर हो गये हैं। इन मकानों में दस से बारह फीट तक मिट्टी भर गयी है। घर का कोई भी सामान काम का नहीं रह गया है। 1970 में बेलाकूची की बाढ़़ की रिर्पोटिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार डा0 उमाशंकर थपलियाल का कहना है कि उस समय भी श्रीनगर में अलकनंदा नदी में लगभग इतना ही उफान था लेकिन तबाही इतनी नहीं हुई थी।
श्रीनगर में मची भीषण तबाही के लिए निर्माणाधीन श्रीनगर जल विद्युत परियोजना जिम्मेदार है। परियोजना का निर्माण करवा रही जीवीके कंपनी ने डैम साइट कोटेश्वर से किलकिलेश्वर तक नदी किनारे लाखों ट्रक मिट्टी डंप की। इस कारण इस क्षेत्र में नदी की चौड़ाई कम हो गयी। गत 16 एवं 17 जून को आयी बाढ़ ने इस मिट्टी को काटना शुरू किया। जिससेे नदी के जलस्तर में दो मीटर तक की बढ़ोतरी हो गयी। सीमा सुरक्षा बल के परिसर में जहां बाढ़ ने तांडव मचाया वहां श्रीयंत्र टापू से नदी अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर न् आकार में बहती है, और उससे आगे नदी की चैड़ाई अचानक कम हो जाती है। इस कारण उस दिन जब बाढ़ के साथ श्रीनगर परियोजना की मिट्टी आयी तो वह उतनी मात्रा में आगे नहीं जा पायी जितनी की बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तक आयी थी। फलस्वरूप पानी के साथ आयी यह मिट्टी एसएसबी, आईटीआई तथा शक्ति विहार क्षेत्र में जमा होने लगी। क्षेत्र से जब बाढ़ का पानी उतरा तो लोगों के होश उड़ गये। इस क्षेत्र के 70 आवासीय भवन एसएसबी अकादमी का आधा क्षेत्र, आईटीआई, खाद्य गोदाम, गैस गोदाम, रेशम फार्म में 12 फीट तक मिट्टी जमा हो गयी। कई आवासीय भवन तो छत तक मिट्टी में समा गये हैं। इन घरों में रहने वाले लोगों की जीवन भर की पूंजी जमीदोज हो गयी।
एक प्रभावित विनोद उनियाल का कहना है कि इस बाढ़ में उनके घर के अंदर कमरों में आठ फीट तक मिट्टी जमा हो गयी है। जीवन भर की कमाई का सारा सामान बर्बाद हो चुका है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जीवन अब कैसे चलेगा। शक्ति विहार मोहल्ले में किराना की दुकान से आजीविका चलाने वाले संतोष चन्द्र नौटियाल पर तो इस आपदा की दोहरी मार पड़ी है। मकान के साथ साथ इनकी दुकान का सारा सामान मलबे में दफन हो गया है। जिससे उनके सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है।
एससबी अकादमी के निदेशक एस0 बंदोपाध्याय की माने तो अकेले अकादमी को लगभग सौ करोड़ का नुकसान हुआ है। इस हिसाब से देखा जाय तो श्रीनगर क्षेत्र में कुल नुकसान का आंकड़ा तीन सौ करोड़ तक जा सकता है।
इसके अलावा देवप्रयाग में भी जलविद्युत परियोजनाओं की मिट्टी से कई सरकारी एवं आवसीय भवन अटे पड़े हैं। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना द्वारा नदी किनारे अवैघ रूप डंप की गयी मिट्टी अब गायब है। और नदी क्षेत्र पूर्व की तरह दिखायी देने लगा है। श्रीकोट में इस तरह की तबाही नहीं हुई वहां भी नदी किनारे बहुत से मकान हैं। दरअसल श्रीकोट के कुछ आगे चैरास झूला पुल से किलकिलेश्वर तक परियोजना की ज्यादातर मिट्टी डंप की गयी थी। इस कारण श्रीकोट इस तबाही से बच गया।

भू-वैज्ञानिक डा0 एस0पी0 सती का कहना है कि उत्तराखंड में बाढ़ से हुई तबाही मे यहां बन रही जल विद्युत परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है।

श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की पांच लाख घनमीटर मिट्टी अलकनंदा के किनारे डंप की गयी। जब नदी में बाढ़ आयी तो उससे तेजी से यह मिट्टी पानी के संपर्क में आयी और इससे नदी का आकार एकाएक बढ़ गया। क्यों कि यह मिट्टी श्रीनगर के ठीक सामने थी इसलिए यह बाढ़ के कारण श्रीनगर के निचले इलाकों मेें जमा हो गयी और तबाही का कारण बनी।

(देवप्रयाग से लगभग 30 किलोमीटर, अलकनंदागंगा पर बनी 330 मेगावाट की यह परियोजना तमाम पर्यावरणीय शर्तो को दरकिनार करके र्सिफ और र्सिफ राजनैतिक दवाब के कारण आगे बढ़ाई गई है। इसकी जानकारी हम दे सकते है। माटू जनसंगठन -विमलभाई)


माटू जनसंगठन से प्राप्त


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