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न्यूज क्लिपिंग्स् | समुद्र से तबाही के तूफान- संदीप निगम

समुद्र से तबाही के तूफान- संदीप निगम

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published Published on Oct 17, 2013   modified Modified on Oct 17, 2013

चक्रवाती तूफान ‘फैलिन’ तबाही की कहानी लिख कर कमजोर पड़ चुका है. देश की वैज्ञानिक प्रगति, मौसम विभाग की सटीक भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन को लेकर राज्य एवं केंद्र सरकारों के बीच सही तालमेल ने साबित किया कि प्रकृति के कहर को रोका भले न जा सकता हो, लेकिन इसके असर को न्यूनतम किया जा सकता है. समुद्र से चक्रवाती तूफान उठने के कारणों और उसके विभिन्न प्रकार की जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज.


आंध्र प्रदेश, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में भारी तबाही बरपा करने के बाद सुपर साइक्लोन ‘फैलिन’ अब मैदानी इलाकों में आगे बढ़ने के साथ ही झारखंड पर आकर कमजोर हो चुका है. सेटेलाइट तसवीरों में फैलिन अब छितराये बादलों के समूह जैसा नजर आ रहा है. लेकिन 12 अक्तूबर को इसकी अनजानी दहशत दक्षिणपूर्वी तटीय इलाकों में रहनेवाले लोगों के चेहरों पर साफ नजर आ रही थी.

12 अक्तूबर की रात करीब 9:30 बजे सुपर साइक्लोन फैलिन ने 12 अक्तूबर की रात करीब 9:30 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम से देश में प्रवेश किया था, जबकि मौसम विज्ञानी साइक्लोन की पहली टक्कर गोपालपुर में होने का अंदाजा लगा रहे थे, जो कि यहां से करीब 15 किलोमीटर दूर है. ‘फैलिन’ की विध्वंसकारी ताकत ने बहुत बड़े इलाके में भारी तबाही मचायी है. तकरीबन 2,400 करोड़ रुपये की धान की फसल, लाखों घर और पेड़ इसकी जद में आने से पूरी तरह से बरबाद हो चुके हैं और कुछेक मौतें भी हुई हैं. ओड़िशा और आंध्र प्रदेश में लाखों लोग अब भी राहत शिविरों में हैं. तेज हवाओं और समंदर से उठती ऊंची लहरों के थपेड़ों ने बड़े इलाके में संचार, बिजली और परिवहन व्यवस्था को भी ठप किया है. चीन जा रहा पनामा का एक मालवाहक जहाज भी साइक्लोन ‘फैलिन’ में फंस कर बंगाल की खाड़ी में कहीं लापता हो गया. इस पर 8,000 टन कच्चा लोहा लदा था. भारतीय तटरक्षकों ने इस जहाज के चालकदल के सभी 18 सदस्यों को बचा लिया है.

प्रशासन के मुताबिक अकेले ओड़िशा के एक करोड़ से ज्यादा लोग सुपर साइक्लोन फैलिन के कहर का शिकार बने हैं. खबरों के मुताबिक साइक्लोन में कुल 27 लोगों की मौत हुई, जो कि फैलिन की विध्वंसकारी ताकत को देखते हुए कुछ भी नहीं है. ओड़िशा के 12 जिलों के 14,514 गांव प्रभावित हुए हैं. पांच लाख हेक्टेयर की खड़ी फसल बरबाद हो गयी है. इनकी कीमत 2400 करोड़ आंकी जा रही है. ‘फैलिन’ से 2,34,000 कच्चे पक्के मकान ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हो गये हैं. 14 साल में आये सबसे भीषण तूफान ‘फैलिन’ से हुई तबाही और नुकसान का सही-सही आकलन करना शायद बहुत ही मुश्किल हो.

सुपर साइक्लोन ‘फैलिन’

बीते चार अक्तूबर को जापान के मौसम विभाग में काम करनेवाले वैज्ञानिकों ने देखा कि वियतनाम के हो-ची-मिन्ह शहर से करीब 400 किलोमीटर पश्चिम की ओर थाईलैंड की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बन रहा है. इसे पहले गंभीरता से नहीं लिया गया, लेकिन जब इसका दायरा बढ़ने लगा, तो वैज्ञानिकों ने इसकी निगरानी शुरू की. छह अक्तूबर को ये जैसे ही मलय खाड़ी से होकर गुजरा, इसकी ताकत बढ़ती हुई नजर आने लगी. इसे भारत की ओर खिसकता देख कर जापान के वैज्ञानिकों ने भारतीय मौसम विभाग को इससे खबरदार किया. भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने आठ अक्तूबर से इसकी कड़ी निगरानी शुरू कर दी. भारतीय मौसम विभाग ने नौ अक्तूबर को खतरे की पहली घंटी बजा दी. कम दबाव का यह क्षेत्र अपना दायरा बढ़ाने के साथ ही लगातार सघन होता चला जा रहा था.

मामले की गंभीरता को भांप भारतीय मौसम विभाग ने सेटेलाइट तसवीरें साझा करते हुए यूनाइटेड स्टेट्स ज्वाइंट टायफून वॉर्निग सेंटर से इस कम दबाव के क्षेत्र पर विशेषज्ञों की राय मांगी. अमेरिकी मौसम विज्ञानियों ने उस इलाके के सभी देशों और जहाजरानी कंपनियों को खबरदार रहने की एडवाइजरी जारी करते हुए सबके लिए खतरे का साइरन बजा दिया. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भारतीय मौसम विभाग को बताया कि यह कम दबाव का क्षेत्र दरअसल एक ‘ट्रॉपिकल साइक्लोन’ है. खतरे की पुष्टि होते ही भारतीय मौसम विभाग तुरंत हरकत में आ गया. एक अभूतपूर्व आसन्न खतरा देश के सामने था. इस बीच अंडमान द्वीपसमूह के मायाबंदर से होते हुए साइक्लोन बंगाल की खाड़ी में आ धमका. थाईलैंड ने इस तूफान का नाम रखा ‘फैलिन.’ थाई भाषा में फैलिन का अर्थ होता है ‘नीलम.’

 सुपर साइक्लोन ‘फैलिन’ ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एडमिनिस्ट्रेशन यानी एनडीएमए और सरकार के होश उड़ा दिये. इसकी वजह यह थी कि केदारनाथ हादसे में घोर लापरवाही के चलते एनडीएमए को काफी आलोचना ङोलनी पड़ी थी. वैज्ञानिकों को 14 साल पहले आये सुपर साइक्लोन की डरावनी यादें ताजा हो आयीं. उस वक्त तूफानी हवाओं की रफ्तार 220 किलोमीटर प्रति घंटे को भी पार कर गयी थी. ओड़िशा में आये उस भयानक सुपर साइक्लोन में करीब 10,000 लोगों की मौत हुई थी. यूनाइटेड स्टेट्स ज्वाइंट टायफून वॉर्निग सेंटर ने जब ‘फैलिन’ की तुलना वर्ष 2005 में आये तूफान कटरीना से की और इसे उससे भी विनाशकारी बताया, तो चिंता और भी गहरा गयी.

भारत में साइक्लोन आने के सीजन

भारत में साइक्लोन के आने के दो सीजन होते हैं. पहला अप्रैल से जून और दूसरा अक्तूबर से दिसंबर के बीच का समय. पूरी दुनिया में हर साल 80 से ज्यादा चक्रवात उठते हैं. कुछ तबाही मचाते हैं और तमाम समुद्र को हिलाते हुए समाप्त हो जाते हैं. अटलांटिक में जब चक्रवात उठता है, तो उसे हरीकेन कहा जाता है, जबकि भारतीय महासागर में चक्रवात को साइक्लोन कहा जाता है. टायफून, हरीकेन और साइक्लोन ये तीनों ही भारी बारिश करनेवाले अत्यंत ही विनाशकारी चक्रवाती तूफान हैं, लेकिन भौगोलिक आधार पर ये तूफान एक-दूसरे से अलग होते हैं और इनके अपने-अपने क्षेत्र भी होते हैं.

टायफून

टायफून एक कम दबाव का ऐसा तूफान है, जो समंदर के गर्म इलाकों से उठता है. प्रारंभिक अवस्था में इसे सिर्फ एक तूफान माना जाता है, लेकिन जब इसकी भीतरी हवाओं की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटा या फिर इससे ज्यादा हो जाती है, तो इसे टायफून का नाम दे दिया जाता है. कई बार तो टायफून की उच्चतम रफ्तार 360 किलोमीटर प्रति घंटा तक मापी गयी है. टायफून पश्चिमी प्रशांत महासागर से उठता है और जापान, ताइवान, फिलीपींस या पूर्वी चीन की ओर बढ़ता है. इसकी आगे बढ़ने की गति 65 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. एशिया में आनेवाला यह तूफान सामान्यतया जून से नवंबर के बीच में आता है, लेकिन अगस्त-सितंबर में इसका सबसे ज्यादा खतरा रहता है. टायफून 900 किमी से ज्यादा के क्षेत्र पर अपना असर डाल सकता है.

हरीकेन

अटलांटिक या पूर्वी प्रशांत महासागर से उठनेवाले विनाशकारी तूफान को हरीकेन कहा जाता है. हरीकेन हमेशा अमेरिका की तरफ ही बढ़ता है. इसकी हवाओं की गति 90 किलोमीटर प्रति घंटा से 190 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है. इसकी वजह से अचानक तूफान के साथ बारिश या फिर टोरनेडो कहलानेवाली चक्रवाती हवाएं चलती हैं. इन सब विनाशकारी तूफानों में कई बातें समान हैं. ये तूफान अपने साथ तेज हवाओं के साथ भारी बारिश लाते हैं. जिससे अचानक बाढ़ आती है, मकान टूट जाते हैं और चट्टानें खिसक जाती हैं. सामान्यतया ये सभी मई से नवंबर के बीच आते हैं और गर्मी एवं नमी वाले इलाकों की तरफ बढ़ते हैं.

 साइंस ने बचायी लाखों की जान

साइक्लोन ‘फैलिन’ वैज्ञानिकों, प्रशासन और सेना के बीच शानदार तालमेल की मिसाल बन गया. मौसम विज्ञान और सेटेलाइट की मदद से ही ‘फैलिन’ की पूरी निगरानी संभव हो सकी. पहली बार मौसम विभाग ने आगे बढ़ते साइक्लोन पर हर घंटे की अपडेट बुलेटिन जारी की. यह बात और है कि ऐन साइक्लोन के स्ट्राइक वाले दिन ही मौसम विभाग की वेबसाइट क्रैश हो गयी थी. यह एक तकनीकी खराबी थी. फिर भी नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एडमिनिस्ट्रेशन ने वैज्ञानिकों, सेना और पांच प्रदेशों की सरकारों के साथ मिल कर बेहतरीन काम किया. आजाद भारत के इतिहास में पहली बार तकरीबन सवा नौ लाख लोगों को उनके घरों से हटा कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया. स्थानीय प्रशासन, पुलिस और लोगों ने भी जिस उच्च स्तरीय कुशलता और लोगों की जान बचाने के लिए जिस अनुकरणीय साहस का परिचय दिया, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं.  राज्य सरकारें, केंद्र सरकार के रेल मंत्रलय, भूतल परिवहन, पेट्रोलियम और दूरसंचार के कर्मियों आदि सबने एक-साथ मिल कर एक लक्ष्य के लिए काम किया.

दक्षिण ओड़िशा के सबसे बड़े शहर बरहमपुर में हर तरफ चक्रवात ‘फैलिन’ के कहर के निशान बिखरे पड़े हैं और ऐसा लगता है जैसे यहां कोई जंग लड़ी गयी हो. तूफान ने ढेर सारे पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया और बिजली के कई खंभे उखाड़ दिये. आंधी इतनी तेज थी कि तीन मोबाइल टावर भी उड़ गये. कई सरकारी इमारतों और निजी घरों की दीवारें गिर गयीं. दुर्गा पूजा के कई पंडाल भी उड़ गये. 50 वर्षीय व्यापारी शंकर राव ने कहा, ‘मैंने अपनी जिंदगी में इस तरह की तबाही कभी नहीं देखी थी.’ एनडीआरएफ, ओडीआरएएफ और अग्निशमन कर्मियों के साथ मिल कर जिला प्रशासन और पुलिस बल प्रमुख सड़कों को साफ करने में लगे हैं.

प्राकृतिक आपदा में शहर के खाजा स्ट्रीट पर एक बड़ी झुग्गी बस्ती पूरी तरह से तबाह हो गयी. चक्रवात से एक दिन पहले नगर निगम ने झुग्गीवासियों को वहां से हटा कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था.

लोगों को साइक्लोन के रास्ते से हटा कर उनकी जान बचाने के लिए 18 हेलीकाप्टर और 12 विमान तैनात किये गये थे. ओड़िशा के लिए सेना और राहत सामग्री की छह टुकड़ियां और चार राहत टुकड़ियां आंध्र प्रदेश भेजी गयी हैं. ओड़िशा में 8.73 लाख लोगों और आंध्र प्रदेश में 1.35 लाख लोगों को निकाला गया. कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि साइंस ने लाखों की जान बचा ली और शायद पहली बार सरकारों को भी लोगों की जान की कीमत समझ में आयी.

 बंगाल की खाड़ी में आये कुछ विनाशकारी साइक्लोन

- नवंबर, 1977 : आंध्र प्रदेश में साइक्लोन आया. तेज हवा और जबरदस्त बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी. समुद्र की लहरें 5 मीटर तक ऊपर उठ गयीं. इस साइक्लोन ने तकरीबन दसियों हजार लोगों की जानें ले ली.

- अप्रैल, 1991 : बांग्लादेश के चटगांव इलाके में साइक्लोन का कहर टूटा. साइक्लोन इतना जबरदस्त था कि हवाओं की रफ्तार 240 किलोमीटर प्रति घंटे को भी पार कर गयी. समुद्र की लहरें 5 मीटर तक ऊपर उठ गयीं. इस भयानक साइक्लोन ने 140,000 लोगों की जानें ले ली और दक्षिण-पूर्वी ढाका का पूरा तटीय इलाका पूरी तरह से बरबाद हो गया.

- अक्तूबर, 1999 : सुपर साइक्लोन की विनाशकारी ताकत ने ओड़िशा में भारी तबाही मचायी. साइक्लोन इतना भयानक था कि हवा की रफ्तार 250 किलोमीटर प्रति घंटे को भी पार कर गयी. समुद्र की लहरें इतनी ऊंचीं उठीं कि तटीय इलाकों से सटे मैदानी इलाके भी समुद्र के पानी से भर गये. इस सुपर साइक्लोन ने तकरीबन 10,000 लोगों की जानें ले ली और करीब 1.5 करोड़ लोगों को बेघर होने के लिए मजबूर होना पड़ा.

- मई, 2008 : विनाशकारी साइक्लोन ने म्यांमार में भारी तबाही मचायी. साइक्लोन में फंस कर तकरीबन 10,000 से ज्यादा लोग मारे गये और हजारों लोग लापता हो गये.

 साइक्लोन और सुपर साइक्लोन

साइक्लोन पश्चिमी प्रशांत महासागर और भारत के पास पश्चिम बंगाल के आस पास उठने वाला एक चक्रवाती तूफान है. साइक्लोन जब भी आता है, विनाश और विभीषिका की एक कहानी लिख कर ही वापस जाता है. कोई साइक्लोन समंदर में उस जगह से उठता है, जहां पर तापमान अन्य जगहों के मुकाबले ज्यादा होता है. उत्तरी ध्रुव के नजदीक वाले इलाकों में साइक्लोन घड़ी चलने की उल्टी दिशा में आगे बढ़ता है. जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास साइक्लोन घड़ी चलने की दिशा में आगे बढ़ता है. साइक्लोन के भीतर हवाओं की रफ्तार 140 किलोमीटर प्रति घंटे या इससे भी ज्यादा तक हो सकती है और ये 25 से 35 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आगे बढ़ता है. साइक्लोन कम से कम एक हफ्ते तक रहता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह विनाशकारी तूफान तकरीबन 1600 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है.

 

हवा की रफ्तार के हिसाब से साइक्लोन की विनाशकारी ताकत का एक से लेकर पांच अंकों तक वर्गीकरण किया जाता है. वैज्ञानिकों ने ‘फैलिन’ का वर्गीकरण सबसे ज्यादा पांच अंकों के साथ किया था, इसीलिए इसे ‘सुपर साइक्लोन’ कहा गया है. यदि समय रहते इससे बचने की तैयारी नहीं की गयी, तो यह अत्यंत ही विनाशकारी साबित हो सकता है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/53914-story.html


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