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न्यूज क्लिपिंग्स् | सोलर पावर प्लांट लगायें-- भरत झुनझुनवाला

सोलर पावर प्लांट लगायें-- भरत झुनझुनवाला

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published Published on Jun 28, 2016   modified Modified on Jun 28, 2016
सरकार द्वारा न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने के पुरजोर प्रयास किये जा रहे हैं. इस सदस्यता के हासिल होने के बाद दूसरे देशों से हमें यूरेनियम मिल सकेगा, जो परमाणु ऊर्जा का मुख्य ईंधन है. अपने देश में यूरेनियम कम ही उपलब्ध है. अतः परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिए इस ग्रुप की सदस्यता अति आवश्यक है. 

ऊर्जा के चार प्रमुख स्रोत हैं- सोलर, न्यूक्लियर, थर्मल एवं हाइड्रो. इनमें सोलर हमारे लिए श्रेष्ठ है. राजस्थान के मरुस्थल तथा डेक्कन के पठार में बड़ी मात्रा में बंजर भूमि उपलब्ध है, जहां सोलर पावर प्लांट लगाया जा सकता है. सोलर पावर का उत्पादन दिन के समय ही किया जा सकता है, लेकिन ऊर्जा के सभी स्रोतों में यह सबसे सस्ता है. वर्तमान में थर्मल तथा हाइड्रो बिजली की उत्पादन लागत 6 से 7 रुपये प्रति यूनिट पड़ रही है.

पर्यावरण की हानि के मूल्य को जोड़ लिया जाये, तो यह उत्पादन लागत 10-15 रुपये प्रति यूनिट पड़ती है. तुलना में सोलर बिजली का मूल्य 4 से 5 रुपये पड़ रहा है. पर्यावरण की क्षति भी नहीं होती है. अतः हमारे लिए सोलर उर्जा को बढ़ावा देना श्रेष्ठ है. सरकार द्वारा सोलर पावर का उत्पादन बढ़ाने के पुरजोर प्रयास किये जा रहे हैं. इन प्रयासों का स्वागत है.

दूसरे स्तर की बिजली न्यूक्लियर पावर है. यह बिजली महंगी पड़ती है. वैश्विक स्तर पर आज कम ही नये न्यूक्लियर प्लांट लगाये जा रहे हैं. इनमें चर्नोबिल तथा फूकूशिमा जैसी दुर्घटनाओं के होने की संभावना बनी रहती है. इसलिए उत्पादन कंपनियां इंश्योरेंस को भारी प्रीमियम अदा करती हैं, जिससे यह बिजली महंगी हो जाती है. इसके महंगा होने का एक प्रमुख कारण पानी की आवश्यकता है. पानी की आपूर्ति के लिए इन्हें पानी के स्रोतों के पास लगाया जाता है, जैसे नरोरा तथा कूडनकुलम में न्यूक्लियर प्लांट लगाये गये हैं. इन्हीं पानी के स्रोतों के पास लोगों की रिहाइश होती है. 

फलस्वरूप इन स्थानों पर न्यूक्लियर प्लांट लगाने का भारी जन विरोध होता है. इन प्लांटों को रिहायशी क्षेत्रों से दूर जैसे पोखरण के रेगिस्तान में लगाया जा सकता है. तब इनको चलाने के लिए पानी को दूर से लाना होगा. जिसके कारण न्यूक्लियर बिजली और महंगी हो जायेगी.

न्यूक्लियर बिजली में हमारी आयातों पर निर्भरता बनी रहती है. एनएसजी की सदस्यता पाने के बाद भी यह परनिर्भरता बनी रहेगी. इस समस्या के दो हल हो सकते हैं. एक यह कि पूर्व में न्यूक्लियर पावर बनाने से निकले कचड़े का फिर से उपयोग किया जाये. हमने यूरेनियम को हासिल करने के लिए अनुबंध कर रखा है कि कचरे का हम फिर से उपयोग नहीं करेंगे. इसमें संशोधन का प्रयास किया जा सकता है. 

दूसरा है कि थोरियम से न्यूक्लियर बिजली बनाने पर अनुसंधान को गति दी जाये. अपने देश में थोरियम के प्रचुर भंडार हैं, परंतु इससे बिजली बनाने की तकनीक अभी विकसित नहीं है. यदि यह विकसित हो जाये, तो न्यूक्लियर पावर बनाने में हमारी आयातों पर निर्भरता समाप्त हो जायेगी. और एनएसजी की सदस्यता की जरूरत ही नहीं रह जायेगी.

तीसरी श्रेणी का बिजली का स्रोत थर्मल तथा हाइड्रो पावर है. थर्मल पावर अति प्रदूषणकारी है. कोयले को जलाने से भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण का तापमान बढ़ा रहा है. दूसरी समस्या यह कि अपने देश में लगभग 150 वर्षों के लिए ही कोयला उपलब्ध है. हाइड्रो पावर पर्यावरण के लिए और ज्यादा हानिकारक है. भाखड़ा और टिहरी जैसी हाइड्रोपावर की झीलों से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो कार्बन डाइआक्साइड से कई गुना ज्यादा जहरीली होती है. हाइड्रो पावर से नदी का बहाव अवरुद्ध हो जाता है. 

इससे नदी के पानी की गुणवत्ता का ह्रास होता है. मछलियां अपने प्रजनन स्थानों को नहीं पहुंच पाती हैं तथा नदी की जैव विविधिता प्रभावित होती है. 

न्यूक्लियर पावर प्लांट को रिहाइश वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए. इससे जनविरोध कम होगा. इंश्योरेंस प्रीमियम भी कम देना होगा. सरकार द्वारा थर्मल तथा हाइड्रो को भी बढ़ाया जा रहा है. इस नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. इन स्रोतों की बिजली सुलभ है, चूंकि कोयला तथा नदियां देश में उपलब्ध हैं. 

परंतु, इनसे होनेवाली पर्यावरण की क्षति को जोड़ लिया जाये, तो यह बिजली बहुत महंगी हो जाती है. पर्यावरण की अनदेखी करना वास्तव में आम आदमी पर कुठाराघात करना है. अतः ऊर्जा के ऐसे स्रोतों से पीछे हटना चाहिए. सारांश है कि सोलर तथा न्यूक्लियर पावर के उत्पादन को सरकार के प्रयास अच्छी दिशा में हैं. लेकिन थर्मल और हाइड्रो से पीछे हटना चाहिए.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/821463.html


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