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न्यूज क्लिपिंग्स् | सौर ऊर्जा पर चलेंगे भविष्य के शहर

सौर ऊर्जा पर चलेंगे भविष्य के शहर

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published Published on Apr 12, 2016   modified Modified on Apr 12, 2016
पांच वर्षों में 10% परंपरागत ऊर्जा की जगह लेंगे सोलर सिटीज
 
शहरीकरण और आर्थिक विकास की तेज गति ने ऊर्जा संबंधी हमारी जरूरतों को भी बढ़ाया है. इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ा है़ ऐसे में दुनिया भर के कई शहरों ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में कमी लाने के लिए नये लक्ष्य और नीतियां निर्धारित किये हैं. इसी क्रम में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश सोलर सिटीज, यानी पूरी तरह सौर ऊर्जा पर चलनेवाले शहर विकसित करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं. बात करें अपने देश की, तो हमारे यहां कई शहरों में विकास की रफ्तार के साथ ऊर्जा की जरूरतों की भी मांग दिनोंदिन बढ़ी है़ 

चूंकि संसाधन सीमित हैं, ऐसे में राज्य सरकार और उनके बिजली विभाग इन जरूरतों को पूरा न कर पाने की स्थिति में अपने हाथ खड़े कर दे रहे हैं और नतीजतन कई शहरों को बिजली की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. इन हालात में ऐसे शहरों की अवधारणा को बल मिला है, जिनकी ऊर्जा संबंधित सारी जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी हों. इसे देखते हुए सरकार ने पिछले वर्ष ‘डेवलपमेंट ऑफ सोलर सिटीज प्रोग्राम' लांच किया.

इस कार्यक्रम के तहत देश में सौर शहरों, यानी सोलर सिटीज विकसित करने के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गयी है, जिससे शहरी स्थानीय निकाय सरकार की मदद से सौर शहर या नवीकरणीय ऊर्जा संपन्न शहर बनने की दिशा में अग्रसर हों. इस दिशा में आगे बढ़ते हुए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के 50 शहरों को सौर शहरों के रूप में विकसित करने की मंजूरी दे चुका है़ 

इसके लिए शहरी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा पर चलनेवाले यंत्रों, जैसे घरों, कार्यालयों और सड़कों पर प्रकाश और होटलाें और घरों में पानी गर्म करने के साधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए उनके निर्माण, वितरण और विक्रय की कार्ययोजना तैयार की है़
इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा दुकानों की स्थापना, सौर भवन डिजाइन करने, शहरी और औद्योगिक कचरे अथवा बायोमास आधारित ऊर्जा परियोजनाओं की शुरुआत की दिशा में भी काम हो रहा है़

सोलर सिटीज प्रोग्राम के तहत चुने गये शहरों में लोगों को सौर ऊर्जा के अलावा, पवन, बायोमास, छोटी पनबिजली और कचरे आदि से बिजली बनाने जैसे नये स्रोतों को अपनाने के लिए भी प्रेरित किया जाना है़ 

सोलर सिटी र्कायक्रम का उद्देश्य संबंधित शहरों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से आपूर्ति बढ़ा कर और ऊर्जा कुशलता के उपायों से पारंपरिक ऊर्जा की मांग में 10 फीसदी तक की कमी लाना है. इसका एक मुख्य उद्देश्य स्थानीय सरकारों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रेरित करना भी है़

इसके साथ ही, शहरी स्थानीय निकायों को नगर स्तरीय ऊर्जा चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त करना, वर्तमान ऊर्जा स्थिति का आकलन, भविष्य की मांग और कार्ययोजना को सम्मिलित करते हुए मास्टर प्लान तैयार करने के लिए सहयोग प्रदान करना, शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता विकास तथा समाज के सभी वर्गों के बीच ऊर्जा के संबंध में जागरूकता पैदा करना और सतत ऊर्जा विकल्प को सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी के माध्यम से लागू करना सोलर सिटी योजना के अन्य उद्देश्य हैं. 

योजना के क्रियान्वयन के लिए चिह्नित सोलर सिटी का मास्टर प्लान तैयार कर उस पर जोर-शोर से काम चल रहा है़ यही नहीं, सोलर सिटी के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा पांच लाख तक की आबादी के विशिष्ट शहरी क्षेत्रों हेतु सोलर सिटी की ही तरह ग्रीन कैंपस की योजना भी संचालित की जा रही है.

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा योजना के क्रियान्वयन के लिए हर सोलर सिटी के लिए 50 लाख रुपये और ग्रीन कैंपस के लिए पांच लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है और योजना में भारत सरकार द्वारा प्रचलित अनुदान राशि विभिन्न परियोजनाओं में सार्वजनिक/ औद्योगिक/ लाभार्थी परक योजनाओं में प्रदान किये जाने का प्रावधान है.

इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेवारी नगर निगम की है़ फिलहाल, सरकार 48 शहरों को सोलर सिटी परियोजना के लिए सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे चुकी है, इनमें आगरा, मुरादाबाद, राजकोट, गांधीनगर, सूरत, नागपुर, कल्याण-डोंबीवली, थाणे, नांदेड़, अौरंगाबाद, इंदौर, ग्वालियर, भोपाल, इंफाल, कोहिमा, दीमापुर, देहरादून, हरिद्वार-ऋषिकेश, चंडीगढ़, बिलासपुर, अगरतला, गुवाहाटी, मैसूर, पणजी आदि शहर शामिल हैं.

बहरहाल, सौर ऊर्जा से बिजली बनाने में हम भले ही चीन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से 10 साल पीछे हों, लेकिन हमारे देश में मौजूदा संसाधनों से हम जल्द ही उसकी बराबरी कर सकते हैं. और तो और, सौर ऊर्जा का भविष्य भी उज्ज्वल दिखता है क्योंकि बिजली बनाने के जितने भी स्रोत हैं, उनमें सौर ऊर्जा संयंत्र को सबसे कम समय में स्थापित करते हुए उत्पादन शुरू किया जा सकता है़

जहां न्यूक्लियर या थर्मल पावर प्लांट लगाने में लगभग 10 वर्षों का समय लग जाता है, वहीं सोलर पावर प्रोजेक्ट महज एक से दो साल के भीतर तैयार हो जाता है़ विशेषज्ञों की मानें, तो वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जा तकनीकें वैश्विक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभायेंगी़ सौर ऊर्जा तकनीक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने, बिजनेस व उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए मददगार साबित होगी़ नये अाविष्कारों की मदद से सौर ऊर्जा की मौजूदा तकनीकों में आनेवाली लागत में कमी आयेगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस तकनीक की पहुंच होगी़

आगरा, मुरादाबाद, राजकोट, गांधीनगर, सूरत, नागपुर, कल्याण-डोंबिवली, ठाणे, नांदेड़, अौरंगाबाद, इंदौर, ग्वालियर, भोपाल, इंफाल, कोहिमा, दीमापुर, देहरादून, हरिद्वार-ऋषिकेश, चंडीगढ़, बिलासपुर, अगरतला, गुवाहाटी, मैसूर, पणजी

http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/783469.html


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