Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | हजारों पेड़ लगानेवाली 105 वर्ष की ‘प्रकृति अम्मा’

हजारों पेड़ लगानेवाली 105 वर्ष की ‘प्रकृति अम्मा’

Share this article Share this article
published Published on Jan 5, 2017   modified Modified on Jan 5, 2017

अपने बच्चे नहीं हैं तो क्या, पेड़ों को ही मान लिया अपनी संतान वर्ष 2016 में बीबीसी ने दुनिया की 100 प्रभावशाली और प्रेरक महिलाओं में थिम्मक्का की गिनती की है. सरकार ने कर्नाटक में सड़क किनारे पेड़ लगाने की योजना का नाम ही थिम्मक्का के नाम से रखा हुआ है- सालुमरदा थिम्मक्का शेड प्लान. 105 की उम्र में भी वह थकी नहीं है. पढ़िए एक रिपोर्ट.

 

जब 40 की उसकी उम्र थी, तो गांव के तालाब में छलांग लगाकर जान देने की कोशिश की. करती भी क्या, घर-परिवार के रिश्तेदार और गांव के लोग-बाग बांझ कह कर ताना देते थे. शादी के 20 वर्ष हो गये थे, मां नहीं बन पा रही थी. मन टूट गया था. कोई और राह सूझ ही न रही थी.


मगर आत्महत्या की कोशिश नाकामयाब हो गयी, शायद जिंदगी को कुछ और ही मंजूर था. उसे ‘वृक्ष माता' बनना था. हम बात कर रहे हैं सालुमरदा थिम्मक्का की. नि:संतान होने की तकलीफ को कम करने के लिए उन्होंने पौधे रोपने का काम शुरू किया. अब तक कर्नाटक में हजारों पौधे लगा चुकी हैं. सिर्फ अपने गांव हुलीकल में 400 बरगद का पेड़ लगाया है. वर्ष 1948 मेें अपने पति बिक्कालुचिकैया के साथ पौधे लगाने की शुरुआत की थी. गांव बेंगलुरु शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर है. पेड़ों की वजह से गांव का रूप ही बदल गया है. पहले कच्ची सड़कें थीं. नजदीक के बाजार तक जाने के लिए लोग बैलगाड़ी से जाया करते थे. रोजी-रोटी के लिए दोनों पति पत्नी सुबह में सड़क बनाने का काम करते. दोपहर में सड़क के किनारे छोटे-छोटे गड्ढे बनाते, फिर उसमें पौधे रोपते. पौधे लग जाने के बाद उसे चारों तरफ से घेर देते. उन पौधों में पानी डालने के लिए दूर के तालाब या कुएं से पानी लाते थे.



औसतन हर साल 10-15 पेड़ तैयार हो जाते थे. वह अपने पौधों को संतान की तरह मानती-प्यार करती हैं. पूछने पर बताती हैं- " मेरा सबसे बड़ा पेड़ 65 साल का हो गया है." गांव में रिश्तेदार जब लड़ने-झगड़ने लगे, गाली-गलौज पर उतर आये तो गांव छोड़ दिया, ताकि अपने मिशन पर ध्यान दे सकूं, मेरा मन कहीं और नहीं भटक सके.



वर्ष 1958 की बात है. जब दोनों पति-पत्नी सड़क के किनारे पौधों में पानी पटा रहे थे, तो दो गांव के मुखियाओं की नजर पड़ी. वे सुग्गनहल्ली पशु मेला देखने जा रहे थे. उन दोनों मुखियाओं ने पति-पत्नी को मेले में रजत पदक देकर सम्मानित किया. यह उनकी जिंदगी का पहला सम्मान था. अब तक उसकी यादें थिम्मक्का की स्मृतियों में ताजा हैं. वर्ष 1991 उनके लिए दुखदायी साबित हुआ.



63 वर्ष तक साथ रहने के बाद थिम्मक्का के पति का देहांत हो गया. ससुरालवालों ने अब भी तंग करना नहीं छोड़ा था. वे उसकी जमीन हड़पने की कोशिश करने लगे. थिम्मक्का ने अपनी जमीन 70,000 रुपये में बेच दी. उस साल हुई बारिश में घर भी बह गया. अपने शुभचिंतकों की मदद से रहने के लिए फिर से मिट्टी का एक घर बनाया. 75 रुपये के विधवा पेंशन के लिए आवेदन दिया. अब पेंशन बढ़ कर 500 रुपये हो गया है.



वर्ष 1994 में उसकी जिंदगी में एक निर्णायक मोड़ आया. कांग्रेस के एक बड़े नेता शामनुरु शिवशंकरप्पा अपनी कार में थिम्मक्का के गांव हुलीकल से गुजर रहे थे. दोपहर का समय था. तेज गरमी पड़ रही थी. तभी, ठंडी हवा के झोंके ने शिवशंकरप्पा ने राहत महसूस की. वे रुक गये और उतर कर पेड़ों को देखने लगे. उन्हें पता चला कि ये पेड़ एक बूढ़ी महिला की मेहनत का नतीजा हैं. वे थिम्मक्का को खोज कर मिले और उसे 5000 रुपये दिये. थिम्मक्का को लगा कि वह सपने देख रही है. शिवशंकरप्पा ने अपने भाषणों में थिम्मक्का के प्रयासों का जिक्र किया.


इसके बाद पास-पड़ोस के लोग थिम्मक्का से मिलने आने लगे. मीडिया पहुंचने लगी. अंगरेजी के एक अखबार में उसके बारे में एक लेख छपा. इस लेख पर राज्यसभा सदस्य सचिदानंदास्वामी की नजर पड़ी. उन्होंने जस्टिस पीएन भगवती के पास नेशनल सिटिजंस एवार्ड के लिए थिम्मक्का का नाम भेजा. 23 दिसंबर, 1996 को उसे यह एवार्ड तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने दिया. नेशनल एवार्ड मिलने के बाद तो पुरस्कार और सम्मानों की झड़ी लग गयी.


थिम्मक्का शहर में गिरते हुए पेड़ों को देख कर कहती हैं-" एक अच्छा पेड़ वह है जो चिड़ियों को फल और बीज देता है. मनुष्य को ताजी हवा और छाया देता है. मगर, ऐसे पेड़ आजकल हैं कहां? "
(इनपुट: द वीक)


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/920681.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close