आज से करीब 90 साल पहले, 20 मार्च, 1927 को डॉ. आंबेडकर ने महाड़ के चावदार तालाब से दो घूंट पानी पीकर ब्राह्मणवाद के हजारों वर्षों के कानून को तोड़ा था और ब्राह्मणवाद को चुनौती दी थी. वहीं, 6 अप्रैल, 1930 को गांधी ने नमक हाथ में लेकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी. दोनों इतिहास की बड़ी घटनाएं हैं और दोनों का असर वर्तमान...
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जब सोच बदलेगी तो खिलेंगी बेटियां-- रमा गौतम
हमारा समाज बेशक आज मार्डन हो गया है। समाज के लोग यही कहते है कि हमने आज तक बच्चों में कोई फर्क नहीं किया और हमारे लिए तो बेटा-बेटी एक समान हैं। मगर, वास्तविकता कुछ और ही होती है। लड़कों के मामले में हम बहुत खुले विचार रखते हैं। मगर, लड़की की बात आते ही कहीं न कहीं हमारी सोच थोड़ी सिकुड़ जाती है, इसी के चलते सृष्टि को आगे...
More »गरीब बदनसीब के आंसुओं से परेशां - गोपालकृष्ण गांधी
कोई तीस साल हुए। शायद उससे भी कुछ ज्यादा। दिल्ली से मैं रेलगाड़ी में जा रहा था। कहां जा रहा था, यह याद नहीं। पर सफर साफ याद है मुझे, जैसे कि कल नहीं आज हुआ हो। क्यूं? क्या हुआ था उस सफर में जो कि भुलाया ना जाए? कोई हादसा? कोई तिलस्मी अनुभव? किसी ऋषि-मुनि का, संयोग से, जीवन बदल देने वाला दर्शन? नहीं, ऐसा कुछ नहीं! एक गाना। सिर्फ,...
More »क्या कहती है सबरीमाला की राजनीति- एस, श्रीनिवासन
आखिरकार नए साल में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं ने सबरीमाला में प्रवेश करके अपने भगवान अयप्पा की पूजा-अर्चना करने में कामयाबी हासिल कर ली। उन्हें यह सफलता सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तीन महीने बाद मिल पाई है। ऐसा लगता है कि केरल की वाम मोर्चा सरकार औरतों को इस मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए माकूल वक्त का इंतजार कर रही थी। जिन दो महिलाओं...
More »सावित्री बाई फुले: जिन्होंने औरतों को ही नहीं, मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद किया-- रवीश कुमार
दो साड़ी लेकर जाती थीं. रास्ते में कुछ लोग उन पर गोबर फेंक देते थे. गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्र-अतिशूद्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं है. घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर दूसरी साड़ी पहन लेती थीं. फिर लड़कियों को पढ़ाने लगती थीं. यह घटना 1 जनवरी 1848 के आस-पास की है. इसी दिन सावित्री बाई फुले ने...
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