शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
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जाति और गुस्से की चुनावी बिसात- नीरजा चौधरी
भारतीय राजनीति में हरियाणा का महत्व दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी अलग है। एक तो यह कृषि प्रधान क्षेत्र है, दूसरा यह देश की राजधानी से सटा राज्य है। हरियाणा के 13 जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आते हैं। इस राज्य ने भारतीय राजनीति को कई बड़े चेहरे दिए और इस बार के आम चुनाव में भी कई बड़े चेहरे यहीं से किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार जो सूरत...
More »इतने सारे लोग आखिर वोट क्यों नहीं देते- पंकज चतुर्वेदी
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 16वीं लोकसभा चुनने का उत्सव शुरू हो चुका है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनावी प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी सरकार वास्तव में जनता के बहुमत की सरकार होती है। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर व्यंग्य ही है कि केंद्र की सरकार आम तौर पर कुल आबादी के 14-15 फीसदी लोगों के समर्थन...
More »राजनीतिक शक्ति का प्रयोजन क्या है- रविभूषण
सोलहवें लोकसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व अब तक के जो राजनीतिक दृश्य हैं, उनमें किसी कोने से भी यह मालूम नहीं होता कि राजनीति को गंभीरता से देखा-समझा जा रहा है. बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि राजनीति से जुड़े लोग (नेता सहित) राजनीति को किन अर्थो-मूल्यों से जोड़ रहे हैं? क्यों कोई दल चुनाव में अपने प्रत्याशियों को खड़ा करता है? किसी भी अन्य राजनीतिक दल से कोई...
More »सुननी होगी दलितों की आवाज- पत्रलेखा चटर्जी
रामविलास पासवान और उदित राज आजकल सुर्खियों में हैं। वजह यह है कि पासवान ने जहां भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया है, वहीं उदित राज ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। आम चुनाव से ठीक पहले ऐसी घटनाएं लाजिमी हैं। तो आखिर क्या वजह है कि दूसरों के बजाय पासवान और उदित राज ज्यादा चर्चा का विषय बने हुए हैं। दरअसल राजनेताओं की सोच यह है...
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