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न्याय की नई मरीचिका- विकास नारायण राय

जनसत्ता 7 नवंबर, 2013 : स्त्रियों के उत्पीड़न का एक और क्षेत्र कानून की गिरफ्त में आने को है। पुरुष वर्चस्व के नजरिए से बेहद नाजुक ‘इज्जत’ के नाम पर होने वाली हत्या का मसला फिलहाल उच्चतम न्यायालय के रडार पर है। अगर यौनिक हिंसा, लैंगिक उत्पीड़न का सर्वाधिक अपमानजनक रूप रही है तो ‘इज्जत’ हत्याएं इसका सर्वाधिक बर्बर रूप होती हैं। इसी तरह, घरेलू हिंसा में स्त्री का दासत्व...

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धनबाद में चाल धंसने से चार की मौत

निरसा: चिरकुंडा से सात किमी दूर बीसीसीएल सीवी एरिया की बसंती माता कोलियरी के सुशील इंक्लाइन में चाल धंसने से मैनेजर सहित चार मजदूरों की मौत हो गयी. तीन लोग घायल हो गये. घटना सोमवार दिन के करीब 11.15 बजे की है. बताया जाता है कि मलबे में दर्जनों मजदूर फंसे हैं. सूचना के अनुसार, हर दिन की तरह सोमवार को भी करीब 259 मजदूर और अधिकारी इंक्लाइन में गये थे....

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हर किसी के हिस्से है मुट्ठी भर आसमान-पुष्यमित्र

दुमका की वंदना के पास जन्म से ही पूर्ण विकसित हाथ नहीं हैं, मगर उसके दोनों पैर न सिर्फ दुनिया में रंग बिखेर रहे हैं बल्कि वह इन्हें पैरों से कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी कर अपना जीवन भी चला रही है. जमशेदपुर की रंजू नेत्रहीन है, लिखित परीक्षा पास करने के बावजूद झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन ने उसे अधिकारिक स्तर की नौकरी के काबिल नहीं समझा था. मगर आरटीआइ के जरिये...

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आरटीआइ में आम आदमी की ताकत

मित्रो, सूचना का अधिकार पर हम लगातार बात करते रहे हैं. इस अधिकार के लागू हुए आठ साल पूरे हो गये. हमारे कई पाठकों और आरटीआइ एक्टिविस्टों ने इसे जनतंत्र के खास अवसर के रूप में याद किया. इन आठ सालों में आम से लेकर खास और गैर सरकारी से लेकर सरकारी लोगों ने इस कानून का अपने-अपने हित और हिसाब से खूब किया. इसका अनुभव भी विस्तृत रहा. इस अनुभव को...

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सूचना के अधिकार के सात साल- एक जायजा प्रगति का..

आजादी के बाद से अबतक शासन को पारदर्शी बनाने के लिए जो प्रयास हुए उसमें सूचना का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण कदम है। बहरहाल, इस कानून की उल्लेखनी सफलता महज 0.3 फीसदी भारतीयों तक सीमित है। देश की आबादी में बस इतनी ही तादाद सूचना के अधिकार के तहज अर्जी डालती है। सोचिए, उस स्थिति में क्या होगा जब देश की एक या दो फीसदी आबादी अपने शासकों की जवाबदारी तय करने के लिए आरटीआई...

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