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भोजन बर्बाद करने की इज्जत- अरुण कुमार त्रिपाठी

जनसत्ता 2 जुलाई, 2012: भोजन की बरबादी को सामाजिक प्रतिष्ठा माना गया है। उत्तर भारत की एक कहानी इस पाखंड को बखूबी बयान करती है। पिता ने अपने पुत्र को समझाया कि जब भी किसी और के घर आयसु (न्योता) खाने जाओ तो थोड़ा-बहुत भोजन छोड़ दिया करो। बेटे ने पूछा, पिताजी ऐसा क्यों? पिता ने समझाया कि बेटा, वह इज्जत है। आयसु खाते समय बेटे को पिता की हिदायत भूल...

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रियो+20 के लिए राष्ट्रीय व वैश्विक प्राथमिकताएं

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण विश्व के राष्ट्राध्यक्ष, सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि और विकास के मुद्दों से जुड़े विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधी 20 से 22 जून 2012 को ब्राजील की राजधानी रियो दी जेनेरियो में एकत्रित होने जा रहे हैं। इस महासम्मेलन को रियो+20 का नाम दिया है क्योंकि 20 वर्ष पूर्व (1992) भी रियो में 172 सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण और विकास के...

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आप कितने सही हैं, डॉ सिंह?- पी साईनाथ( अनुवाद-मनीष शांडिल्य)

प्रिय प्रधानमंत्री जी, मुझे यह जानकर खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट को ‘‘सम्मानपूर्वक’’ फटकारते हुए आप ने कहा है कि अनाज, सड़ते हुए खाद्यान्न का निपटारा जैसे सभी सवाल नीतिगत मामले हैं. आप बिल्कुल सही कह रहे हैं और बहुत दिनों बाद ऐसा किसी ने कहा है. ऐसा कर आप संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सार्वजनिक बयानबाजी में ईमानदारी लाने की एक छोटी-सी कोशिश कर रहे हैं, जिसकी बहुत कमी महसूस की जा रही थी. बेशक यह...

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कड़वे बादाम : दिल्ली के बादाम उद्योग में मज़दूरों का शोषण

  उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दूर-दराज़ कोने में बसी हुई, शोर-ग़ुल और चहल-पहल भरी करावलनगर की बस्ती, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों का एक उभरता हुआ केन्द्र है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर और उनके परिवारों को रोज़गार मिलता है। ये उद्यम किसी भी मानक से छोटे नहीं है। वैश्विक सम्‍बन्‍धों की जटिल श्रृंखला में बँधे ये उद्यम, सालभर चालू रहते हैं और हज़ारों मज़दूरों के रोज़गार का स्रोत हैं। कई करोड़...

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फेसबुक और पश्चिमी पूंजीवाद- केविन रैफर्टी

सिंगापुर में बीबीसी वर्ल्ड बिजनेस न्यूज का प्रस्तुतकर्ता खुशी-खुशी इस संभावना के बारे में बात कर रहा था कि अपने आईपीओ के मार्फत फेसबुक एक ‘ट्रिलियन डॉलर कंपनी’ बन सकती है। जाहिर है वह गलत था। फेसबुक का कमजोर प्रदर्शन इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि पश्चिमी पूंजीवाद पटरी से उतरता जा रहा है। तथाकथित वैश्विक नेता महज वक्त जाया कर रहे हैं, जबकि बुनियादी संरचनाओं के समक्ष गंभीर संकट...

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