SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 1273

प्रेस की आजादी और हमारा रिकॉर्ड-- रामचंद्र गुहा

मैं 1988 के पूर्वार्द्ध में उत्तराखंड में शोध कर रहा था, जब उसी क्षेत्र में एक बहादुर नौजवान पत्रकार की हत्या की खबर आई। उसका नाम उमेश डोभाल था। उसने शराब माफिया, पुलिस, आबकारी विभाग व स्थानीय राजनेताओं की सांठगांठ का पर्दाफाश किया था। उसे शराब ठेकेदारों के भाड़े के हत्यारों ने मारा था। 1988 के उत्तरार्द्ध में मैं दिल्ली में रह रहा था, जब लोकसभा द्वारा प्रेस की आजादी को...

More »

हमारी अम्मा, दीदी और बहनजी - मृणाल पांडे

हालिया चुनावों के नतीजों के साथ ही दो कद्दावर महिला मुख्यमंत्रियों (जयललिता और ममता बनर्जी) ने तमाम ऐतिहासिक साक्ष्यों को नकारते हुए दोबारा अपनी राजनैतिक ताकत का लोहा मनवा लिया। गुजरात में आनंदीबेन की कुर्सी फिलवक्त तो सुरक्षित लगती ही है। अब यदि उत्तर प्रदेश में भी अगले बरस बहिन मायावतीजी फिर सत्ता में आ जाती हैं, तो देश के चार महत्वपूर्ण राज्यों की कमान ताकतवर महिला मुख्यमंत्रियों के हाथों...

More »

शुक्ल जी न होते, तो चंपारण की दुर्दशा नहीं देख पाते महात्मा गांधी

बिहार में महात्मा गांधी के आने की जब भी चर्चा होगी, वहां राजकुमार शुक्ल भी खड़े मिलेंगे. वह न होते तो शायद चंपारण के किसानों की दुर्दशा गांधी के बरास्ते दुनिया नहीं देख पाती. गांधी के सत्याग्रह के प्रयोग का हमसफर रहे राजकुमार शुक्ल का जन्म 23 अगस्त, 1875 को चंपारण जिला के लौरिया थाना के सतवरिया नामक गांव में हुआ था. इनके पिता कोलाहल शुक्ल थे. उन दिनों निलहों...

More »

सूचना के अधिकार का पाठ भी हटा दिया किताब से

जयपुर। राजस्थान में पाठ्यक्रम बदलाव का विवाद खत्म नहीं हो रहा है। अब सामने आया है कि पाठ्यक्रम बदलते समय कक्षा आठ की पुस्तक से सूचना के अधिकार (आरटीआई) से संबंधित पाठ भी हटा दिया गया है। स्वयंसेवी संगठनों ने इस बारे में मुख्य सचिव को पत्र लिख कर आपत्ति दर्ज कराई है। राजस्थान में 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ था। देश में ऐसा करने वाला राजस्थान पहला...

More »

आदिवासियत का लड़ाकू विचारक-- अनुज लुगुन

मराठी के वरिष्ठ आदिवासी कवि वाहरू सोनवाने ‘स्टेज' कविता में कहते हैं- ‘हम स्टेज पर गये ही नहीं/हमें बुलाया भी नहीं गया/उंगली के इशारे से हमारी जगह हमें दिखाई गयी/वे स्टेज पर खड़े होकर/हमारा दुख हमें ही बताते रहे.' यह कविता आदिवासी समाज को गैर-आदिवासियों द्वारा निर्देशित करने की यंत्रणादायी प्रक्रिया को बताती है.  आदिवासियों को निर्देशित करने की औपनिवेशिक मंशा का प्रतिरोध करते हुए कई बार वाहरू जी कह...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close