लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। शहर के अंग्रेजी स्कूल का पढ़ा बच्चा और गांव के साधनहीन विद्यालयों के पढ़े बच्चे यदि एक ही साथ परीक्षा में बैठें तो पास होने की अधिक सम्भावना किसकी है?..और अगर परीक्षा में 75 प्रतिशत सीटें ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए हों लेकिन इस पर भी शहरी बच्चे जालसाजी से बैठें तो?. साफ है कि गांव का हक मारा जाएगा। ग्रामीण बच्चों के लिए खुले नवोदय...
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दो शिष्य गुरु चार, सरकारी महिमा अपरंपार
पौड़ी गढ़वाल [विनोद पोखरियाल]। एक स्कूल, चार शिक्षक, दो छात्र और खर्च साढ़े दस लाख रुपये सालाना। ये है उत्तराखंड केएक स्कूल की तस्वीर। यह कोई पब्लिक स्कूल नहीं, पौड़ी जिले के कोट ब्लाक स्थित एक गाव का सरकारी जूनियर हाईस्कूल है। यहा सरकार चार शिक्षकों के वेतन पर प्रतिमाह 88 हजार रुपये खर्च कर रही है। यह स्थिति एक-दो नहीं पूरे चार साल से है। यदि इन दोनों बच्चों को...
More »मणिपुर के बच्चे कहाँ जाएं
मणिपुर में उग्रवाद और उग्रवाद के विरोध में जारी हिसंक गतिविधियों के चलते बीते कई दशकों से बच्चे हिंसा की कीमत चुके रहे हैं. यह सीधे तौर से गोलियों और अप्रत्यक्ष तौर से गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण की तरफ धकेले जा रहे हैं. राज्य में स्थितियां तनावपूर्ण होते हुए भी कई बार नियंत्रण में तो बन जाती हैं, मगर स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे बुनियादी ढ़ांचे कुछ इस तरह से चरमराए हैं...
More »बच्चों की कब्रगाह है मेलघाट-शिरीष खरे
विदर्भ को देश भर में किसानों की आत्महत्या वाले इलाके के रुप में जाना जाता है लेकिन इसी इलाके में सतपुड़ा पर्वत में बसी मेलघाट की पहाड़ियों में छोटे बच्चों की मौत के आंकड़े पहाड़ियों से ऊंचे होते चले जा रहे हैं. साल दर साल कोरकू आदिवासियों के हजारों बच्चे असमय काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं. कुपोषण मेलघाट में 1993 को पहली बार कुपोषण से बच्चों के मरने...
More »देश नहीं भगवान को प्यारे
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इंसेफलाइटिस से हज़ारों बच्चों का मरना और विकलांग होना जारी है. इससे बचने के उपाय हैं तो मगर दो सरकारों के झगड़ों और लालफीताशाही में उलझकर रह गए हैं जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट बच्चों की मौत बिना नागा जारी है. वे विकलांग भी हो रहे है. 2-4-6-8 साल के नन्हे-मुन्ने और मुन्नियां. कुछ दुधमुंहे भी हैं. रोने क्या कुनमुनाने तक से लाचार. एक-दो नहीं सैकड़ों-हजारों मासूम....
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