गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते...
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क्या हो विकास की सही परिभाषा- भारत डोगरा
सामान्य रूप से बाहरी चमक-दमक को देखकर कह दिया जाता है कि यह क्षेत्र विकास कर रहा है। मान लीजिए किसी महानगर में बहुत सी झुग्गी-झोपडि़यों बनी हैं और महानगर में कार्य करने वाले गरीब मजदूरों को इन सस्ते आवासों में आश्रय मिला हुआ है, क्योंकि इससे महंगी जगह में रहने के लिए पैसा उनके पास नहीं है। एक दिन उनकी झोपडि़यां तोड़ दी जाती हैं। इस स्थान पर एक...
More »राशन पर सरकारी डाका -- प्रशांत कुमार दुबे
सरकार अब राशन में खाद्यान्न की जगह नकद भुगतान करने जा रही है. इसका पायलट फेज दिल्ली की दो बस्तियों में प्रारंभ भी कर दिया गया है. सरकार के इस कदम के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी समाप्त करने की कोशिश कर रही है. हालांकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर करने की साजिश तो वर्ष 1991 के बाद से ही शुरु हो...
More »सब्सिडी का अनोखा खेल-डॉ भरत झुनझुनवाला
वित्त मंत्री ने मन बनाया है कि लाभार्थी को सब्सिडी नगद रूप में दी जाए. वित्त मंत्री के मंतव्य का स्वागत किया जाना चाहिए. गरीब के नाम पर उच्चवर्ग और कंपनियों को पोषित करना उचित नहीं. हमारे धर्मग्रंथों में भी गरीब को नगद देने की बात कही गयी है. सरकार द्वारा डीजल, यूरिया, खाद्यान्न आदि पर सब्सिडी दी जा रही है. आम आदमी समझता है कि इससे उसे राहत मिल रही...
More »खाद्यान्नों के निर्यात पर जोर नहीं दे रहा कृषि मंत्रालय
नई दिल्ली। कृषि मंत्री शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि उनका मंत्रालय प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के मद्देनजर खाद्यान्नों के निर्यात पर जोर नहीं दे रहा है। पवार का यह बयान ऐसे समय आया है जब खाद्य मंत्री के वी थामस ने कहा है कि उनका मंत्रालय खाद्यान्नों के रिकार्ड उत्पादन और भंडारण समस्या की वजह से गेहूं और चावल के सीमित मात्रा में निर्यात के खिलाफ नहीं है।...
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