अगर चंपारण और रूस की क्रांति के लिए प्रसिद्ध 1917 देश और दुनिया में संभावनाएं खुलने का वर्ष था, तो 2017 देश और दुनिया के सिकुड़ने का साल माना जायेगा. यह साल संभावनाओं के सिकुड़ने का साल था और संवेदनाओं के सिमटने का साल था. बीते साल में भाजपा का विस्तार और लोकतंत्र का पराभव जारी रहा. भाजपा चुनाव भी जीती और राजनीति के खेल भी. उत्तर प्रदेश में...
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तंग नज़रिये के प्रतीकों का पोषण-- एस निहाल सिंह
फिल्म पद्मावती को लेकर छिड़ा विवाद एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। केंद्र में 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से अभिव्यक्ति की आजादी तथा अपने अंदाज़ में ज़िंदगी जीने के लिए जगह सिकुड़ती जा रही है। दूसरा, सार्वजनिक बातचीत में सतहीपन आ गया है, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसा नहीं होता था। इसके कारण कहीं दूर तलाश करने की जरूरत नहीं। आरएसएस के...
More »पहचान के पूर्वाग्रह से ग्रस्त समाज-- आकार पटेल
भारत के बारे में एक विचित्र बात यह है कि अगर काेई कुछ कहता है, तो उस बात की तुलना में कहनेवाला ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. बेशक, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन हमारे देश में अगर कुछ विवादास्पद कहा जा रहा है, तो जिसने विवादास्पद बातें कही हैं, उसके लिए सबसे पहले उस व्यक्ति की पहचान को उत्तरदायी माना जाता है. इसीलिए,...
More »भिक्षाटन कर मुखिया ने स्कूल के लिए खरीदी जमीन
शिवाजीनगर (समस्तीपुर) : समस्तीपुर जिले के शिवाजीनगर के बल्लीपुर पंचायत में एक गांव है- गीदरगंज. पिछले दस वर्षों से यहां के बच्चे झोंपड़ी में चल रहे प्राथमिक विद्यालय में जमीन पर बैठ कर पढ़ने काे विवश हैं. ज्यादातर अल्पसंख्यक व महादलित समुदाय के बच्चे हैं. लेकिन, बल्लीपुर पंचायत के मुखिया विनोद मंडल की पहल से इन बच्चों के लिए अब स्कूल का इंतजाम होगा. दरअसल विनोद गांव में...
More »और भी गम हैं जीएसटी के सिवा - मृणाल पाण्डे
जबर्दस्त सरकारी तामझाम के साथ जीएसटी का आगाज़ हो चुका है। इस वक्त भले ही हर जगह जीएसटी को लेकर चर्चा छिड़ी हो, पर तय है कि देश 2017 द्वारा विमोचित कुछ अन्य बडी चुनौतियों की चर्चा से काफी महीनों तक बरी नहीं हो पायेगा| मसलन स्वयंभू (कम से कम सरकार तो यही कह रही है) गोरक्षकों की देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाई जा रही अंधी हिंसा की...
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