देश के ग्रामीण इलाके के औसत नागरिक का स्वास्थ्य खर्च औसत शहरी नागरिक के स्वास्थ्य खर्च की तुलना में ज्यादा है। 68 वें दौर की गणना पर आधारित नेशनल सैंपल सर्वे की नवीनतम रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है। लेवल एंड पैटर्न ऑफ कंज्यूमर एक्सपेंडिचर 2011-12 शीर्षक इस रिपोर्ट के आंकड़ों के विश्लेषण से जाहिर होता है कि एक औसत भारतीय हालांकि प्रति माह औसत ग्रामीण भारतीय की तुलना में...
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अभिशाप बना खनन-उद्योग- पी जोसेफ
राज्य के बंटवारे के बाद कहा जा रहा था कि बिहार राज्य में राजस्व का कोई स्रोत नहीं बचा. सभी खनन क्षेत्र झारखंड में जाने के कारण बिहार आर्थिक बदहाली में पहुंच जायेगा, पर ऐसा नहीं हुआ. बिहार में मात्र बालू एवं पत्थर से खनन क्षेत्र में लगभग झारखंड राज्य के जितना ही राजस्व आ रहे हैं. दूसरी तरफ, झारखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जानेवाले इस उद्योग को उचित...
More »भूख की भाषा और शास्त्र - सुधीश पचौरी
जनसत्ता 30 मई, 2013: हमारे समकालीन सोच-विचार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ‘गरीब' के बारे में सिर्फ ‘अमीर' (इस प्रसंग में ‘एलीट') विचार करते हैं। गरीब अपनी गरीबी के बारे में विचार करता नहीं पाया जाता। अपने बारे में इस कदर ‘विचार विहीन' होने के बारे में भी गरीब कभी नहीं बोलता। यह बात भी अमीर ही बताते हैं कि गरीब अपनी गरीबी के बारे में इस कारण विचार...
More »अर्थशास्त्र की ऊंची मीनार से कुपोषण मिटाने की यह कवायद....
भारतीयों को विवाद-प्रिय माना जाता है और हमारी यह विवादप्रियता एक बार फिर से उठान पर है ! गरीबी-रेखा और गरीबों की तादाद के बारे में लंबे समय तक वाक्युद्ध में उलझे रहने के बाद, प्रसिद्ध अनिवासी भारतीय(एनआरआई) अर्थशास्त्रियों ने एक बार फिर से विवाद छेड़ा है कि भारत में कुपोषण का विस्तार कितना है। पहले योजना आयोग ने गरीबों की संख्या को कागजी तौर पर घटाने की कोशिश की...
More »सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सस्ती दवाइयों का मुद्दा
रक्त-कैंसर रोधी महंगी और पुरस्कार प्राप्त दवा ग्लीवेक से जुड़े पेंटेंट अधिकार की भारत में रक्षा की जाय- दवा बनाने वाली मशहूर नोवार्टिस कंपनी ने यह गुहार लगायी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इसे खारिज कर दिया।कोर्ट के फैसले के बाद एक दफे फिर से देश में यह बहस शुरु हो गई है कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है और सरकार की स्वास्थ्य नीति हर जरुरतमंद को...
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