पत्रकारिता के बारे में समालोचना करते वक्त डर क्यों लगता है? क्या इसलिए कि लोकतंत्र के खंभों को पाक दामन माना जाता है? या इसलिए कि ये खंभे काफी ताकत रखते और समय-समय पर ताकत दिखाते भी हैं? अब यह तय करना मुश्किल होता जा रहा है कि चौथा खंभा, लोकतंत्र का भार उठाये है या वही लोकतंत्र पर भारी पड़ रहा है. चौथा खंभा यानी पत्रकारिता यानी अखबार, न्यूज...
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आर्थिक उदय का वह नायक- संजय बारु
आज कच्चे तेल की कीमतों के गिरने पर दुनिया इस चिंता में दुबली हुई जा रही है कि इसका आर्थिक विकास पर कितना बुरा असर पड़ेगा। हालांकि कच्चे तेल के मामले में पूरी तरह आयात पर निर्भर भारत इस परिस्थिति पर न तो खुश होता दिखता है, और न ही दुखी। दरअसल, भारतीय नीति-नियंता उन कीमतों को नहीं भूल पाए हैं, जो उन्हें तेज वृद्धि के दौरान चुकानी पड़ी थी। उनका...
More »बजट 2016 : गांवों के कायाकल्प की कोशिश
भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी के साथ कृषि संकट का भारी दबाव है. ऐसी स्थिति में आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्रामीण विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देकर सरकार की दूरदर्शिता और प्राथमिकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है. औद्योगिक उत्पादन और घरेलू मांग में बढ़ोतरी के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना बहुत जरूरी है. इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने...
More »ग्रामीण भारत को ‘मेगा पुश’- प्रमोद जोशी
मोदी सरकार ने चार राज्यों के चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक जरूरतों का पूरा करनेवाला बजट पेश किया है. इसमें सबसे ज्यादा जोर ग्रामीण क्षेत्र, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर है. राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत रखने के बावजूद सोशल सेक्टर के लिए धनराशि का इंतजाम किया गया ोहै. अजा-जजा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम भी इसका संकेत देते हैं. बजट का संदेश है कि अमीर ज्यादा...
More »आधी अधूरी खाद्य व्यवस्था-- जाहिद खान
तत्कालीन यूपीए सरकार जब साल 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक लेकर आई, तो यह उम्मीद बंधी थी कि इस विधेयक के अमल में आ -जाने के बाद देश की 63.5 फीसद आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक हासिल हो जाएगा। अफसोस, इस कानून को बने तीन साल हो गए, मगर यह आज भी पूरे देश में अमल में नहीं आ पाया है। नौ...
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