जार्ज आर्वेल और उनके 1946 के लेख ‘राजनीति और अंग्रेजी भाषा' का स्मरण करिए। स्मरण करिए राजनीतिक संवाद में भाषा के प्रयोग के बारे में उनकी चेतावनी को : ‘राजनीतिक भाषा की रचना झूठ को सच जैसा और हत्या को आदरणीय कृत्य दिखाने, और कोरी हवाबाजी को वास्तविकता का जामा पहनाने के लिए की जाती है।' आर्वेल को यह समझने के लिए याद करने की जरूरत है कि जेएनयू प्रकरण...
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चौधराहट के जुगाड़ में बदलते लोग--- विजय विद्रोही
हरियाणा में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इस उम्मीद में उम्मीदवारों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की गई है कि इससे पढे़-लिखे लोग ही चुनाव में उतरेंगे और जन-प्रतिनिधि बनेंगे। इस नियम ने सरपंची की चाह रखने वाले कई लोगों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। हर जगह तरह-तरह से इसके तोड़ निकाले जा रहे हैं। इसके चलते समाज में ऐसे बदलाव होते भी दिख रहे हैं,...
More »कानूनों पर ठीक से अमल हो तो बदलना ही क्यों पड़े? - संतोष कुमार
जिस जल्दबाजी के साथ हम कानूनों में संशोधन कर लेते हैं, उससे साफ होता है कि हम अपने कानूनों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। 2013 और 2015 में क्रिमिनल लॉ या जुवेनाइल जस्टिस कानून में किया गया गया बदलाव इसी बात को साबित करता है। 2013 में बदलाव तब हुआ, जब निर्भया के साथ ज्यादती हुई और 2015 में तब जबकि उसके साथ बर्बरता से पेश आने वाला किशोर...
More »मौलिक अधिकार से वंचना क्यों?- पवन के वर्मा
मेरी दृष्टि में जान-बूझ कर बड़ी चालाकी से भारत के संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है. संविधान सभा में लंबी बहसों के बाद हमारे राष्ट्र-निर्माताओं ने भारत को सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार देने का निर्णय किया था. इसका अर्थ यह है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं. इसी तरह यह अधिकार भी दिया गया कि योग्य आयु का...
More »सिर्फ व्यक्ति की आय बढ़ने से नहीं होता विकास : ज्यां द्रेज
नयी सरकार की आर्थिक घोषणा को ‘बिग बैंग' बताने के लिए इस्तेमाल किया गया. बाद में नयी सरकार की आर्थिक सफलता के दावे को सही ठहराने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि असलियत यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के मामले में लंबे समय से बहुत अच्छा कर रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था मामूली उतार-चढ़ाव के साथ करीब 7.5 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से बीते 12 साल से...
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