सैकड़ों करोड़ रु की जिस रकम से बिहार के स्कूलों की तस्वीर बदल सकती थी उसका ज्यादातर हिस्सा भ्रष्टाचारियों की जेब में चला गया. इर्शादुल हक की पड़ताल सत्ता के शीर्ष से चले अच्छे इरादों का जमीन तक पहुंचते-पहुंचते किस तरह बंटाधार हो जाता है, इसका उदाहरण है यह घोटाला. इससे यह भी साफ होता है कि योजनाएं कितनी भी अच्छी बन जाएं, जब तक उन्हें अमली जामा पहनाने वाले तंत्र...
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सुधार पर हावी सियासत : केविन रैफर्टी
मेरे पुराने मित्र मनमोहन सिंह इस वक्त आखिर क्या सोच रहे होंगे? क्या अब समय आ गया है कि वे भारत के प्रधानमंत्री पद के दायित्व से मुक्त हो जाएं और 40 वर्षो की शीर्षस्तरीय लोकसेवा के बाद रिटायरमेंट ले लें? या क्या उन्हें और सोनिया गांधी के कांग्रेस-नीत गठबंधन को इस उम्मीद में मध्यावधि चुनाव करा लेना चाहिए कि शायद युवा राजनेता सामने आएं और अपने ताजगीभरे विचारों के साथ भारत...
More »आपके मन पर असर या बे असर?- योगेन्द्र यादव
अब आपने इन पंक्ितयों को पढ़ने की जहमत उठाई है तो एक तकलीफ़ और कीजिये. अपने घर या पड़ोस से दूसरी से पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों को बुलाइये. उनसे कहिये कि वे निम्नलिखित पैरा को पढ़ कर सुनाएं. यह पैरा दूसरी कक्षा की पाठय़पुस्तक से लिया गया है. ’मैं और मेरी बहन रीता छत पर खेल रहे थे. अचानक असमान में बादल गरजने लगे. बिजली कड़कने लगी. बारिश की...
More »बीच बहस में न्यूनतम मजदूरी
हालांकि केंद्र सरकार ने मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाले मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने की बात मान ली है, फिर भी वह इस मामले में संविधानप्रदत्त न्यूनतम मजदूरी देने में संकोच कर रही है जबकि देश के कई सूबों में अब भी मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाली मजदूरी न्यूतम मजदूरी से कम है। सरकार का तर्क है कि न्यूनतम मजदूरी दी गई तो बढ़ा हुआ वित्तीय...
More »प्रतिबद्ध पत्रकार बड़ा बदलाव ला सकते हैं- ज्यां द्रेज
1. झारखंड की स्थापना का एक दशक पूरा हुआ। झारखंड के बारे में आपका मूल्यांकन क्या कहता है ? झारखंड की जनता ने अलग राज्य बनाने के लिए जब लडाई ठानी तो आस यह लगी थी कि राज्य बना तो उन्हें अपनी जिन्दगी संवारने के बेहतर मौके मिलेंगे।झारखंड की जनता के लिए यह एक तरह से मुक्ति-यज्ञ था।लेकिन हुआ इसके उलट, झारखंड की स्थापना से ताकत उन्हीं की बढ़ी जिनसे जनता...
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