बजट का इंतजार सबको है। खासकर ग्रामीण और कृषक वर्गों में इसकी बेसब्री ज्यादा है। उनके लिए यह बजट ‘रक्षक' या ‘भक्षक' की भूमिका निभाने वाला होगा, क्योंकि पिछले दो बजट में किसानों के लिए कुछ खास नहीं था। आम चुनाव के दौरान किए गए वादों ने उनमें खासा उत्साह भरा था, लेकिन धरातल अनछुआ रह गया। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा 50 फीसदी लाभकारी मूल्य देने की...
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अच्छे दिनों की सतर्क उम्मीद-- कन्हैया सिंह
चालू वित्त वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार इस बार काफी सतर्कता बरत रही है। खासकर वर्तमान के आकलन और भविष्य के लक्ष्य तय करने के मामले में। बड़ी-बड़ी उम्मीदें बांधने की बजाय उसने व्यावहारिक रवैया अपनाया है। मसलन, अगले वित्त वर्ष की विकास दर को ही लें। सरकार ने अनुमान लगाया है कि अगले साल जीडीपी की विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी के...
More »मौसम की मार से निपटने के उपाय करे सरकार
बजट में किसान कई बातों के अलावा मौसम की मार से बचाव के उपाय भी चाहता है। वह बेहतर मौसम अनुमान, फसलों की समय से क्षतिपूर्ति, सीधी सब्सिडी, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जैविक खेती की उम्मीदें रखता है। जानकार भी कहते हैं कि सरकार कृषि और उससे जुड़े सेक्टर में भरपूर निवेश करे ताकि सूखे में स्थितियां नियंत्रण में बनी रहें। एक नजर- बजट 2016-17: क्या हैं उम्मीदें नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो किसानों...
More »जातीय विषमता का जहर और आरक्षण की आग - राजकिशोर
हरियाणा और उसके आसपास का बड़ा इलाका जाट समुदाय की आरक्षण की मांग की आग में झुलस गया। इन मांगों का कभी अंत भी नहीं होगा। समानता व सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण की मांगों के पक्ष में कुछ भी तर्क दिए जाएं, लेकिन मुट्ठीभर लोगों का ही भला करने वाले इस तरीके से न तो समानता आने वाली है और न ही समाज में जातियों का जहर मिटने वाला...
More »मौजूदा विकास मॉडल में गांवों की जगह- मुकुल श्रीवास्तव
खुली अर्थव्यवस्था, खर्च करने के लिए तैयार विशाल आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था-ये सारी चीजें एक ऐसे भारत का निर्माण कर रही हैं, जहां व्यापार करने की अपार संभावनाएं हैं। इसके बावजूद आंकड़ों में अभी भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापार के लिए आदर्श देश नहीं बन पाया है। मॉर्गन स्टेनली की ताजा रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के शहर अब भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे...
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