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अब इंसाफ के लिए नहीं करना होगा ज्यादा इंतजार, पांच साल में मुकदमा खत्म करने का लक्ष्य

नयी दिल्लीः भारत में कई ऐसे मामले भरे पड़े हैं, जो सालों से चल रहे है. एक आकड़े के अनुसार भारत में लगभग तीन करोड़ से ज्यादा मामले है जो लंबित पड़े हैं. लेकिन अब अरसों से चले आ रहे मुकदमों और न्याय की आस में दशकों तक इंतजार करने वाले लोगों के लिए सुकून की खबर है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कहा, अब...

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में- रविभूषण

मुक्तिबोध और फैज जैसे कवियों ने जब ‘अभिव्यक्ति के खतरे उठाने' और ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे' का आह्वान किया था, वे राज्यसत्ता के चरित्र और उसके द्वारा समय-समय पर लगायी गयी पाबंदियों से भली भांति परिचित थे. मुक्तिबोध ने तो नहीं, पर फैज ने राज्यसत्ता के दमन को ङोला भी था. अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का काम सर्वसत्तात्मक और एकदलीय शासन प्रणाली मनमाने ढंग से करती...

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उनके हिस्से की जमीन- नीलांजन मुखोपाध्याय

इतिहास उलट कर देखें, तो जमीन झगड़ा-फसाद का एक बहुत बड़ा कारण रही है। जब जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया अस्तित्व में नहीं आई थी, और रीयल एस्टेट व छोटे प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा जमीनों की बिक्री का चोखा धंधा नहीं पनपा था, तब जमीन सांस्कृतिक वस्तु थी और परंपरा से जुड़ी थी। बड़े शहरों में काम करने और होली-दिवाली जैसे त्योहारों पर अपने पैतृक गांवों में जाने वाले असंख्य लोग अब...

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घटता पैसा और ठहरे ग्राम न्यायालय

क्या केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता के अभाव में ग्राम न्यायालयों की संख्या नहीं बढ़ पा रही ? उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के आंकड़ों से कम से कम इसी आशंका की पुष्टी होती है। केंद्र की पिछली सरकार के विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने 18 दिसंबर 2013 को एक प्रश्न के उत्तर में लोकसभा को बताया कि ग्राम न्यायालय एक्ट के अमल में आने के चार सालों में राज्यों को...

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किसने मारा उन 42 लोगों को? - सुधांशु रंजन

हाशिमपुरा मामले में जीवित बचे सभी 16 अभियुक्तों की निचली अदालत द्वारा हुई रिहाई ने भारत की न्याय व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल खड़ा किया है। लगभग 28 वर्षों के इंतजार के बाद मृतकों के परिजनों को जोर का झटका लगा, जब संदेह का लाभ देते हुए अदालत ने अभियुक्तों को बरी कर दिया। घटना 22 मई 1987 की है, जब मेरठ के हाशिमपुरा से प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) के...

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