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भारत सामाजिक प्रगति सूचकांक में 132 देशों में 102 पर

न्यूयार्क : सामाजिक प्रगति सूचकांक पर 132 देशों की सूची में भारत का स्थान 102वां रहा. यह मानवीय सुख का पैमाना है जो सकल घरेलू उत्पाद या प्रति व्यक्ति आय के पारंपरिक आर्थिक आकलन के पार जाता है. सामाजिक प्रगति सूचकांक 2014 की सूची में ब्रिक्स देशों - ब्राजील, रुस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका - में सिर्फ भारत 100वें स्थान से नीचे है. यह सूची अमेरिका का एक गैर मुनाफा...

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गांव मात्र वोटों से ज्यादा कुछ नहीं है- अनिल जोशी

जिस देश का अस्तित्व उसके गांवों से हो, वही नकारे जाएं, तो इससे बड़ी विडंबना कुछ नहीं हो सकती। देश में 8,800 शहर और 22,000 कस्बों की तुलना में साढ़े छह लाख गांव संख्या में कहीं ज्यादा हैं। देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में बसती है, और यह बड़ी संख्या ही इस देश की राजनीतिक दिशा तय करती है। राज्यों के मुख्यमंत्री व देश के प्रधानमंत्री इन्हीं...

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मीडिया की मर्यादा- सुशील कुमार महापात्र

मीडिया की समाज में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में मीडिया की कार्यप्रणाली और रुख पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सवाल यह है कि क्या मीडिया बदल रहा है? क्या मीडिया के नैतिक...

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लेखा परीक्षण पर रखें नजर

देश में अब तक 15 बार लोकसभा के चुनाव हुए हैं. लोकतांत्रिक कसौटी पर हम खरा उतरने की कोशिश करते रहे हैं. इस कोशिश का ही नतीजा है कि अब करीब-करीब प्रत्येक मतदाता निर्भय हो कर मतदान करने लगा है. इसने बाहुबल को बहुत हद तक कमजोर किया है, लेकिन चुनाव में धनबल अब भी कायम है. इसके कई रूप हैं. इस पर अंकुश लगाने के लिए चुनावी खर्च के लेखा परीक्षण...

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इतने सारे लोग आखिर वोट क्यों नहीं देते- पंकज चतुर्वेदी

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 16वीं लोकसभा चुनने का उत्सव शुरू हो चुका है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनावी प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी सरकार वास्तव में जनता के बहुमत की सरकार होती है। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर व्यंग्य ही है कि केंद्र की सरकार आम तौर पर कुल आबादी के 14-15 फीसदी लोगों के समर्थन...

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