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कृषि ऋण माफी: रिजर्व बैंक ने बैंकों से जानकारी मांगी

मुंबई । नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक :कैग: द्वारा कृषि रिण माफी में गंभीर अनियमितताओं संबंधी रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद अब भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों से इस बारे में जानकारी मांगी है। रिजर्व बैंक ने बैंकों से 52,000 करोड़ रुपये की कृषि रिण माफी योजना में अनियमितताआें पर जानकारी मांगी है। साथ ही उनसे वसूली गई राशि तथा इस मामले में दर्ज एफआईआर का ब्यौरा मांगा है। केंद्रीय बैंक की अधिसूचना...

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सरकार के बजट में वंचितों के हकों की रक्षा कैसे हो- भारत डोगरा(विविधा फीचर सर्विस)

हाल के वर्षों में देश में ऐसे अनेक बजट विश्लेषण संस्थान स्थापित हुए हैं जो बजट में गरीब व कमजोर वर्ग के हितों का विश्लेषण इस दृष्टि से करते हैं कि इससे उनके हितों की रक्षा की जा सके, उन्हें आगे बढ़ाया जा सके। राजस्थान के संदर्भ में बजट के विश्लेषण व गरीब लोगों के बजट के आकलन-मूल्यांकन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को संभाला है बजट अध्ययन राजस्थान केंद्र ने। यह...

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क्रोनी पूंजीवाद और विकास- भरत झुनझुनवाला

राजतंत्र, सामंतवाद व कम्युनिज्म की तुलना में पूंजीवाद ने दुनिया में बहुत अधिक समृद्धि लायी है. पूंजीवाद की यह सफलता खुले बाजार में प्रतिस्पर्धा से हासिल हुई है. बाजार में हर व्यक्ति को प्रयोग करने, नये माल बनाने एवं नयी तकनीक के उपयोग की छूट होती है. जैसे पूंजीवाद में छूट है कि कोई किसान हाइब्रिड बीज से फसल उगाये या देशी बीज से. एक किसान सफल हुआ, तो दूसरे...

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जहां वे सेतु बनते हैं- मिहिर पंड्या

जनसत्ता 1 फरवरी, 2013: गणतंत्र दिवस की सुबह। जयपुर साहित्य उत्सव के उस सत्र का शीर्षक था ‘विचारों का गणतंत्र’। आशीष नंदी ने पहले उदाहरण देकर विस्तार से समझाया कि क्यों एक सवर्ण अभिजात का भ्रष्टाचार हमारी बनाई ‘भ्रष्टाचार’ की मानक परिभाषाओं में फिट नहीं होता और क्यों सिर्फ दलित का भ्रष्टाचार नजर आता है। इसलिए जब उन्होंने यह कहा कि भ्रष्टाचारियों का बहुमत वंचित जातियों से आता है तो उन्होंने अपनी...

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जुदा होना खुदा का, नुक्ते से- योगेंद्र यादव

लिखा तो था ‘खुदा’ मगर नुक्ते के फेर से बन गया ‘जुदा’. आशीष नंदी का ‘विवादास्पद बयान’ वाला मुद्दा कुल मिला कर उर्दू की इस कहावत जैसी बात थी, जिसका बतंगड़ बन गया है. जिंदगी भर समाज के हाशियाग्रस्त समूहों की हिमायत करनेवाले आशीष नंदी दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदाय के पक्ष में एक बारीक तर्क गढ़ रहे थे. बात रखते-रखते एक वाक्य में जुबान फिसल गयी. और बस, सारा मीडिया उस...

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