जनसत्ता 13 सितंबर, 2013 : कभी रघुवीर सहाय ने कहा था, ‘न सही कविता मेरे हाथ की छटपटाहट सही’। यही बात भाषा के बारे में कही जा सकती है। सिर्फ मनुष्य अपनी छटपटाहट को भाषा यानी शब्द दे सका है। यह कहानी सत्तर हजार साल पहले शुरू होती है, हालांकि लिपियों का संसार करीब पांच हजार साल पहले बनना शुरू हुआ। आज भाषा मानव अस्तित्व की अनिवार्यता और पहचान हो...
More »SEARCH RESULT
जलयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया
विभिन्न अध्ययन एवं आकलन बताते हैं कि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी वर्तमान सात अरब से बढ़ कर नौ अरब तक पहुंच जायेगी. इस स्थिति में पानी और भोजन की मांग बढ़ेगी, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और भी गंभीर हो सकती है. दुनियाभर में पानी से जुड़े मसलों पर काम कर रहे संगठनों ने इसे लेकर चिंता जतायी है. इसी कड़ी में स्टॉकहोम में पिछले 22 वर्षो से...
More »सिर्फ पढ़ा देना शिक्षक का काम नहीं- प्रो. यशपाल
बात जब पहले और अब की शिक्षा और शिक्षक में तुलना की आती है, तो उसे अच्छे-बुरे में नहीं आंका जा सकता. आज के शिक्षक भी अच्छे हैं, अपना काम कर रहे हैं. हालांकि सभी को अच्छा या खराब कहना सही नहीं होगा. पहले के शिक्षक भी कुछ बहुत अच्छे होते थे, तो कुछ नहीं. यह जरूर था कि पहले के शिक्षकों के पास विद्यार्थियों को पीटने का अधिकार हुआ करता...
More »तर्कशीलता की मशाल- सुभाष गताडे का आलेख
जनसत्ता 28 अगस्त, 2013 : गए साल मार्च की बात है, जब मुंबई के एक उपनगर के गिरजाघर में सलीब पर टंगी ईसा मसीह की प्रतिमा के पैर से टपक रहे जल ने तहलका मचा दिया था। हजारों की तादाद में वहां भीड़ जुटने लगी और ईसा मसीह के ‘टपकते आंसुओं’ से भावविह्वल होती नजर आई। मेले जैसा दृश्य बन गया। टीवी वालों ने इस ‘चमत्कार’ का सजीव प्रसारण शुरू...
More »कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश
वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...
More »