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फेरीवालों को सम्मान का हक है- सुधांशु रंजन

दैनिक जरूरतों की वस्तुएं घर के निकट उपलब्ध करानेवाले मेहनतकशों का हर दिन असुरक्षा और अपमान के बीच बीतता है. उनके दु:ख-दर्द को देखते हुए उनके हकों को कानूनी जामा पहनाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है. भारत में 90 फीसदी से अधिक लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती. इनमें एक बड़ा वर्ग फेरीवालों का है, जो सड़कों के किनारे और गलियों में...

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'हम ना मुसलमान हैं, ना हिंदू, हम तो गरीब हैं...'- दिलनवाज पाशा

मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारों लोगों को शरणार्थी बना दिया। राहत कैंपों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों में बदल गई। शामली के लिसाढ़ गांव के मोहम्मद यासीन कांधला के एक राहत शिविर में रह रहे हैं। यासीन राहत कैंपों के शरणार्थियों की कहानी बयां कर रहे हैं। उनकी बातें समाज और सरकार के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करती हैं वे कहते हैं, ''हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे...

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आरटीआइ से पंचायतें मांगें अधिकार

मित्रो,                                                                                                                                                                              आप पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधि हैं. जनता ने आपको इसलिए चुना कि आप पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर उनकी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए योजनाएं बनाएं, उनका कार्यान्वयन करें और उन पर नियंत्रण रखें. संविधान के 73वें संशोधन ने आपको वही ताकत दी है, जो अपने क्षेत्र में विधायकों और सांसदों को मिला हुआ है. निचले स्तर पर आप पंचायत सरकार हैं. पंचायत सरकारें सत्ता के लोकतांत्रिक ढांचे की...

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बदलाव की गुमनाम बयार- निराला

बिहार की राजधानी पटना में कुछ युवा चुपचाप दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. निराला की रिपोर्ट. अगर आप पटना के किसी शख्स से वहां के युवाओं के बारे में जानना चाहेंगे तो उसके मन में इन युवाओं की कई स्मृतियां मिलेंगी. मसलन सड़कछाप युवकों की टोलियां जो लहरिया कट (बाइक को इधर-उधर नचाकर चलाना) में हुड़दंग मचाते हुए राह चलते लोगों को...

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‘ऐसे कानून के लिए हम विकास दर बढ़ने का इंतजार करते रहें, यह जरूरी तो नहीं’

खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अलग-अलग खेमों से अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है. सामाजिक कार्यकर्ता इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कॉरपोरेट जगत इस पर चिंतित है. अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज, रेवती लॉल को बता रहे हैं कि क्यों देश को इस कानून की जरूरत है और इसमें कौन-सी खामियां हैं जो दूर होनी चाहिए. खाद्य सुरक्षा विधेयक ने तमाम आशंकाएं पैदा कर दी हैं. पहली आशंका यह है कि देश के...

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