पानी के रास्ते में दजर्नों अड़ंगे हैं, इसलिए वह बांध तोड़ रहा है। बाढ़ के प्रबंधन में कुव्यवस्था और कमीशनखोरी इतनी है कि राज्य और केंद्र की योजनाओं में जगह-जगह पर रिसाव देखा जा सकता है। डूब क्षेत्रों में लगातार रिहाइश बढ़ती जा रही है। ऐसे में, बाढ़ और उससे होने वाली तबाही का संकट घटे तो कैसे? जून से सितंबर के बीच बाढ़ का शोर सुनाई पड़ता है। जैसे-जैसे...
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खाद्य या यूपीए-सुरक्षा बिल!- प्रमोद जोशी
जिस विधेयक को लेकर राजनीति में ज्वालामुखी फूट रहे थे, वह खुशबू के झोंके सा निकल गया. पक्षियों-विपक्षियों में उसे गले लगाने की ऐसी होड़ लगी, जैसे अपना बच्चा हो. आलोचना भी की तो जुबान दबा कर. यों भी उसे पास होना था, पर जिस अंदाज में हुआ उससे कांग्रेस का दिल खुश हुआ होगा. जब संसद के मॉनसून सत्र के पहले सरकार अध्यादेश लायी तो वृंदा करात ने कहा था,...
More »कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश
वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...
More »सियासत और नर्मदा की आफत- शिरीष खरे
कुछ बुनियादी सवालों की उपेक्षा करके राजनीतिक फायदे के लिए प्रचारित की जा रही नर्मदा-क्षिप्रा जोड़ने की परियोजना काफी भयावह नतीजे दे सकती है. शिरीष खरे की रिपोर्ट. 29 नवंबर, 2012 का दिन और स्थान था इंदौर जिले का उज्जैनी गांव. मध्य प्रदेश में यह आगामी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले का समय था. तब इस गांव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा के वरिष्ठ...
More »तू क्यों पिछड़ी लाडो!- प्रियंका कौशल
छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...
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