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कर ढांचे की कमजोर कड़ियां- अभिनव श्रीवास्तव

जनसत्ता 8 फरवरी, 2013: बीते दिनों जब प्रधानमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार सी रंगराजन ने सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले कर-अनुपात बढ़ाने के लिए अमीरों पर ऊंची दर से कर लगाए जाने की बात कही तो उनका यह बयान सीधे तौर पर दो घटनाओं से प्रभावित रहा होगा। पहली घटना का संबंध अमेरिका से है, जहां पिछले बीस सालों में पहली बार अमेरिकी सीनेट ने अमीरों पर कर बढ़ाने के प्रस्ताव को...

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इंसानी दिमाग में छुपी है दुर्दात अपराधियों की पहचान

नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। लंबी कशमकश के बाद सरकार ने डीजल पर सब्सिडी खत्म करने की तरफ कदम बढ़ा ही दिया। जरूरतमंदों तक सब्सिडी पहुंचे, इसके लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण [डीबीटी] की भी शुरुआत हो गई। अब सरकार तय कर चुकी है कि खजाने पर से सब्सिडी का बोझ घटाना है। मगर खाद्य सुरक्षा जैसे बड़े मोर्चे पर कदम बढ़ाकर सरकार ने यह संकेत भी दे दिए हैं कि राजनीतिक...

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समझदारी का मोतियाबिंद

जनसत्ता 4 फरवरी, 2013: गार्गा चटर्जी इस घड़ी आशीष नंदी होना आफत को गले लगाना है। तकनीक के इस ताबड़तोड़ दौर में जहां बोले गए शब्द ध्वनि की रफ्तार को पछाड़ रहे हों, उनका अर्थ पीछे छूटता जा रहा, तो यह देख कर जरा भी अचरज नहीं होता कि साहित्य के एक समारोह में आशीष नंदी के ‘जातिसूचक’ शब्दों को कुछ विवाद प्रेमी लोग लपक लें। असल में सांप्रदायिकता के छद्म विरोध...

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यौन हिंसा की जड़ें- अजेय कुमार

जनसत्ता 29 जनवरी, 2013:  सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा गठित समिति का उद्देश्य था आपराधिक कानूनों और अन्य प्रासंगिक कानूनों में ऐसे संभव संशोधन सुझाना ताकि ‘महिलाओं पर चरम यौन हमलों के मामलों में तेजी से फैसला हो सके और मुजरिमों को कहीं ज्यादा सजा दिलाई जा सके।’ अभी इस समिति को बने ज्यादा समय नहीं हुआ कि बलात्कार की अन्य हालिया घटनाओं...

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बाजार नहीं, जनहितैषी नीतियां बनाये सरकार- जोसेफ स्टिग्लिज

- अर्थशास्त्र के लिए 2001 में नोबल पुरस्कार जीतनेवाले प्रो जोसेफ इ स्टिगलिट्स ने सोमवार को पटना में आद्री के स्थापना दिवस व्याख्यान में बाजार, सरकार व समाज की भूमिका से लेकर अमेरिका के संकट तक को बहुत आसान शब्दों में रखा और बताया कि पूंजीवाद को लगातार पुनर्परिभाषित करते रहने की जरूरत क्यों है. हमलोग उनके इस व्याख्यान के बरक्स अपनी सरकारों के नीतिगत फैसलों, बाजार की भूमिका और अपने समाज...

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