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भारत में 250 भाषाएं हुईं विलुप्त

नई दिल्ली : भारत में तकरीबन 850 जीवित भाषाएं हैं और पिछले 50 साल में करीब 250 भाषाएं विलुप्त हुईं. यह बात जाने-माने भाषाविद् गणेश देवी के संस्थान भाषा रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेंटर द्वारा ‘भारतीय भाषाओं के लोक सर्वेक्षण’ (पीएलएसआई) में जाहिर हुई. ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे जॉन अब्राहम ग्रियर्सन के नेतृत्व में 1894-1928 के बीच हुए भाषा सर्वेक्षण के करीब 100 साल बाद हुए अपने तरह...

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खाद्य सुरक्षा विधेयक पर कांग्रेसी सांसदों के लिए विप जारी

नई दिल्ली। सोमवार को लोकसभा में खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश करने समेत कुछ अहम विधायी कार्य तय किए गए हैं। कांग्रेस इन्हें जल्द से जल्द पारित कराने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। सत्तारूढ़ पार्टी ने इसी उद्देश्य से पूरे हफ्ते उपस्थित रहने के लिए अपने सदस्यों के लिए तीन लाइन का विप जारी किया है। सदस्यों से सदन में मौजूद रहने को कहा गया है और सोमवार, मंगलवार, गुरुवार और...

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रत्नों के धंधेबाजों का भांडा फोड़ने वाले थे नरेन्द्र दाभोलकर

पुणे। अपनी हत्या के पहले सामाजिक आंदोलनकारी नरेंद्र दाभोलकर ने एक और भंडाफोड़ू मुहिम की योजना बनाई थी। वे नामनिहाद ज्योतिषियों के रत्नों और ‘पत्थरों’ के जबरदस्त कारोबार के खिलाफ अभियान छेड़ना चाहते थे, ताकि लोगों को इनकी असलियत का पता चल सके। पुलिस को शक है कि इस गोरखधंधे से जुड़े लोग भी वारदात में शामिल हो सकते हैं। गुरुवार को उनकी संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (मानस) के पुणे...

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रेत और रोड़ा- अतुल चौरसिया

उत्तर प्रदेश में आइएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के खिलाफ कार्रवाई एक तीर से दो शिकार करने की कवायद है. इसका पहला मकसद है अवैध रेत खनन का कारोबार बचाना और दूसरा, सियासी फायदे के लिए धार्मिक भावनाएं भुनाना. अतुल चौरसिया की रिपोर्ट. 28 जुलाई से पहले कादलपुर और दुर्गा शक्ति नागपाल का नाम देश-प्रदेश तो क्या गौतमबुद्ध नगर जिले के भी ज्यादातर लोगों ने नहीं सुना था. गांवों के लिए आप जो...

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तू क्यों पिछड़ी लाडो!- प्रियंका कौशल

छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...

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