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धरती से 60 करोड़ लोगों का वजूद मिटने की रफ्तार बढ़ी, 21वीं सदी तक आएगा खतरा

लंदन. दुनिया की 60 करोड़ की आबादी का वजूद 21 वीं सदी की शुरुआत तक मिट सकता है। इसकी वजह है ग्लोबल वॉर्मिंग (धरती का बढ़ता तापमान)। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते इस समय समुद्र का स्तर पिछले 2,100  सालों में सबसे ज़्यादा तेजी से बढ़ रहा है और 21 वीं सदी तक समुद्र में पानी का स्तर 190 सेंटी मीटर तक बढ़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का दावा है कि समुद्र का...

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अर्थ डे आज: 2050 तक 10 में से 9 लोगों को रहना होगा भूखा

नई दिल्‍ली. आज अर्थ डे है। दुनियाभर में धरती को बचाने की कोशिशें हो रही हैं। 1970 में छोटे से समूह अर्थ डे नेटवर्क ने अमेरिका ने 22 अप्रैल को 'पृथ्‍वी दिवस घोषित किया। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने 2009 में 22 अप्रैल को 'अंतरराष्‍ट्रीय पृथ्‍वी दिवस' के रूप में मान्‍यता दी। धरती पर बढ़ रहे कचरे, प्रदूषण, विलुप्‍त होते जीव-जंतु और पेड़-पौधों पर मंडरा रहे खतरों के प्रति जागरुकता पैदा करना इसका मुख्‍य उद्देश्‍य...

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गांधी के सिवा कोई रास्ता नहीं है -- सच्चिदानंद सिंहा से आलोक प्रकाश पुतुल की बातचीत

सच्चिदानंद सिंहा भारत के उन चुनिंदा विचारकों में हैं, जो अपने समय से लगातार मुठभेड़ करते रहते हैं. 81 साल की उम्र में भी लगातार सक्रिय सच्चिदानंद सिंहा मानते हैं कि भारत में आने वाले दिनों में अगर किसी नये समाज का निर्माण करना है तो समाजवादी विचारकों को गांधी की कुछ बातों को स्वीकारना ही होगा. उनसे कुछ सामयिक मुद्दों पर की गई बातचीत यहां प्रकाशित की जा रही...

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कानकुन समझौताः डूबते को तिनका

स्पेनी में एक कहावत है, ‘माल कैसा भी हो हांक हमेशा ऊंची लगानी चाहिए।’ मैक्सिको के कानकुन शहर में हुए जलवायु सम्मेलन से लौट रहे 194 देशों के मंत्री शायद इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए सम्मेलन में हुए समझौतों की तारीफ़ कर रहे हैं। सम्मेलन के मेज़बान मैक्सिको के राष्ट्रपति फ़िलीपे काल्डिरोन ने कहा कि इस सम्मेलन ने विश्व के नेताओं के लिए धरती को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के...

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विफलता का दूसरा चक्र कानकुन- महेश राठी

संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों की शुरुआत जहां दुनिया भर के राजनेताओं, पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के लिए पिघलते हुए ग्लेशियर, जलस्तर बढ़ते महासागरों, धसकते पहाड़ों, बदलते मौसम और गर्म होती धरती की चिंताओं का केंद्र थी, वहीं कोपेनहेगन और कानकुन तक पंहुचते यह चिंता विकसित दुनिया के हितों को साधने की कूटनीतिक चालों को पूरा करने के साधन स्थलों में बदल चुकी थी। अंततोगत्वा इस नीले ग्रह को बचाने...

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