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प्रवासी मजदूरों के पास न खाना बचा है और न पैसे बचे हैं! घर पहुंचने के लिए तकलीफें उठाईं सो अलग..

इस महामारी काल में 5 जून को, विभिन्न सामाजिक संगठनों, शिक्षाविदों और विश्वविद्यालयों के छात्रों के एक स्वयंसेवक समूह ‘स्ट्रान्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क’ ने अपनी तीसरी रिपोर्ट ‘टू लीव या नॉट टू लीव? लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज् होम’ जारी की. इस नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन प्रवासी मजदूरों ने स्वान के स्वयंसेवकों को सहायता के लिए फोन किया (15 मई और 1 जून के बीच 821...

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खस्ताहाल उद्योग-धंधे, अर्थव्यवस्था की हालत भी पतली

-डॉयचे वेले,  कोरोना संकट के दौरान लाखों प्रवासी कामगारों ने यह सोच कर घरों का रुख किया कि वे अपने लोगों के बीच रहकर कुछ न कुछ करके जीवन-यापन कर लेंगे. लेकिन बिहार में रोजगार के सीमित अवसरों के बीच 'कुछ न कुछ' भी तलाशना उनके लिए भारी पड़ रहा है. अकुशल मजदूरों के लिए दिहाड़ी तो कुशल या अर्द्धकुशल  कामगारों के लिए रोजगार के सीमित अवसर परेशानी का सबब बन...

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कोरोना संकट के बीच जिंदा रहने का संघर्ष करते रोहिंग्या शरणार्थी

-द क्विंट, कोरोना वायरस की मार न केवल स्वास्थ्य, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी लोगों पर पड़ी है. ऐसी स्थिति में रोहिंग्या रिफ्यूजियों की हालत भी खराब है. परेशान होकर अपनी जगह से भागकर दूसरे देश में शरण लेने पर मजबूर रोहिंग्याओं पर इस महामारी में दोहरी मार पड़ी है. भारत में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, इनमें भी महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद सबसे ज्यादा मार दिल्ली...

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कोरोना की मारी दुनिया में रोजगार और उत्पादन का भविष्य

न्यूजलॉन्ड्री,  आज हमारी दुनिया में सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है. दो हफ्ते पहले मैंने लिखा था कि कोविड-19 के कारण हुए इस आर्थिक विनाश के फलस्वरूप अब कई ऐसी समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं जो अब तक हमारी नजरों से ओझल थीं. मैंने उन प्रवासी मजदूरों की दिल दहला देने वाली हालत के बारे में लिखा था. वे पहले रोजगार की खोज में अपने गांवों को छोड़कर...

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#जीवनसंवाद: आत्महत्या के विरुद्ध होना क्यों जरूरी!

-लोकवाणी, सुशांत सिंह के साथ खड़े होने से बचिए! हमें आत्महत्या के विरुद्ध होना है. उसके साथ नहीं.हमारी समस्या यह है कि हम जीवित व्यक्ति के साथ कभी समय पर खड़े नहीं होते, लेकिन मातम के वक्त समय पर पहुंच जाते हैं. -दयाशंकर मिश्रा सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया का हिस्सा नहीं हैं. बिहार के पूर्णिया से मुंबई तक उनका सफर सपने सरीखा रहा. उनकी मृत्यु पर सब चकित हैं. ऐसे याद कर...

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