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पंचतत्व: विकास को संतुलन चाहिए और चैनलों को विज्ञान रिपोर्टर वरना ग्लेशियर ‘टूटते’ रहेंगे!

-जनपथ, इंसान होने के नाते हम सबकी कुछ ज़रूरतें हैं, जिन्हें पूरा किया जाना है. आखिर, उत्तराखंड, हिमाचल और ओडिशा की जनता को भी वही सुख-साधन क्यों नहीं चाहिए जो दिल्ली में रहने वालों को मुहैया हैं? विकास नाम के लुभावने वादे में निचाट गरीबी से निपटने की चुनौती छिपी है और इसमें संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का खतरा भी है.  संतुलन साधा जा सकता है, बस नजरिया सही होना चाहिए. न...

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उत्तराखंड सरकार ने पनबिजली परियोजनाओं द्वारा कम पानी छोड़ने की वकालत की थी

-द वायर, उत्तराखंड के चमोली जिले में बर्फ फिसलने से अचानक आई भीषण बाढ़ और इसके चलते व्यापक स्तर पर हुए नुकसान ने साल 2013 के केदारनाथ आपदा के घावों को हरा कर दिया है. केंद्र एवं राज्य सरकार के ऊपर सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने पिछली आपदाओं से सबक नहीं लिया और बेहद संवेदनशील हिमालयी क्षेत्रों में बेतरतीब ‘तथाकथित’ विकास कार्य जारी है, जिसका खामियाजा आम लोगों को ही भुगतना...

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‘रन ऑफ दि रिवर’ जैसी फर्जी तकनीकों से लोगों को बेवकूफ बनाया जा सकता है, हिमालय को नहीं

-द प्रिंट, ‘रन ऑफ दि रिवर’ क्या होता है उससे पहले ये समझ लीजिए कि वास्तव में चमोली में हुआ क्या है? गंगा किसी एक धारा का नाम नहीं है, हिमालय की कई जलधाराएं मिलकर गंगा नदी को बनाती है. इसी तरह की एक छोटी सी धारा का नाम है ऋषिगंगा. थोड़े ऊपर की ओर मौजूद ग्लेशियर से यह धारा निकलती है. इस ग्लेशियर को नंदादेवी ग्लेशियर भी कहते हैं क्योंकि...

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साहित्य में विद्धता और रसिकता को अलग करके देखने का पूर्वाग्रह व्यापक है

-सत्याग्रह, विद्वत्ता और रसिकता साहित्य में, साहित्य की आलोचना और अध्यापन में विद्वत्ता को अक्सर सूखी और रसिकता को आर्द्र मानने का पूर्वाग्रह व्यापक है. पर ऐसे मुक़ाम, सौभाग्य से हमारे यहां रहे हैं जब विद्वत्ता और रसिकता किसी एक ही व्यक्ति में, लगभग आवयविक रूप से संलग्न, प्रगट हुए हैं. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आधुनिक आलोचना के परिसर में सबसे पहले हैं. वे अधीत (शिक्षित) विद्वान थे और गहरे रसिक भी. दशकों...

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योगा चटाई, BBQ ग्रिल्स- 2020 में दिल्ली के लोगों ने मास्क के अलावा क्या खरीदा

-द प्रिंट, इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में, नॉवल कोरोनावायरस के पहली बार सामने आने के बाद से भारत में अभी तक कोविड-19 के क़रीब एक करोड़ मामले और 1.45 लाख से अधिक मौतें दर्ज हो चुकी हैं. आंकड़ों से संकेत मिलता है कि कोविड कर्व शायद अब नीचे की ओर जा रहा है चूंकि हाल ही में रोज़ाना के मामले कम दर्ज हो रहे हैं. लेकिन सामान्य हालात के जैसे...

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