इंटरनेट पर सूचनाएं और आंकड़े खोजना कभी मुश्किल नहीं रहा, पर भारत से संबंधित आंकड़े खोजना कभी आसान भी नहीं रहा। ऐसे स्रोत बहुत ज्यादा नहीं हैं, जहां देश के सारे आंकड़े मिल जाएं और वे विश्वसनीय भी हों। आंकड़ों तक जनता की सर्वसुलभता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति 2012 का निर्माण किया गया है। अब इसी नीति के तहत, वेबसाइट का निर्माण किया गया है,...
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भारत का आदिवासी-खाता मतलब घाटा ही घाटा !
सरकारी नौकरियों में आदिवासी समुदाय के लोगों की मौजूदगी नाम-मात्र को है- एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् द्वारा जारी एक शोध में इस तथ्य की नये सिरे से पुष्टी की गई है। बीते 18 सितंबर को जारी इस शोध के संकेत हैं कि आरक्षण की नीति के बावजूद कुछ मामलों में आदिवासी समुदाय के लोगों का हाशियाकरण लगातार बढ़ रहा है। (पूरी रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें). बीते मई महीने...
More »कहां खो गई गन्ने की मिठास- वी एम सिंह
सभ्य समाज पर मुजफ्फरनगर दंगा एक धब्बा है, जिसमें करीब 44 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह राजनीतिक पार्टियों का वोट बैंक एजेंडा तो हो सकता है, परंतु इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के आपसी भाईचारे को गहरा धक्का लगा है। इस दंगे की लपट में आने से हजारों किसानों को गांवों से पलायन करना पड़ा है। कवाल गांव की घटना तो एक नमूना भर है। प्रदेश...
More »चिंता ओजोन परत की
आज ‘ओजोन परत संरक्षण दिवस’ है. धरती के चारों ओर फैली ओजोन परत की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से यह दिवस हर साल 16 सितंबर को दुनियाभर में मनाया जाता है. इस मौके पर जानते हैं कि क्या है ओजोन परत और इसे बचाना क्यों है जरूरी.. ।।नॉलेज डेस्क।। तकनीकी विकास के साथ इनसान ने खुद के लिए ही एक कब्र खोदना शुरू कर दिया. शुक्र है...
More »मरती भाषाओं के दौर में- शेखर पाठक
जनसत्ता 13 सितंबर, 2013 : कभी रघुवीर सहाय ने कहा था, ‘न सही कविता मेरे हाथ की छटपटाहट सही’। यही बात भाषा के बारे में कही जा सकती है। सिर्फ मनुष्य अपनी छटपटाहट को भाषा यानी शब्द दे सका है। यह कहानी सत्तर हजार साल पहले शुरू होती है, हालांकि लिपियों का संसार करीब पांच हजार साल पहले बनना शुरू हुआ। आज भाषा मानव अस्तित्व की अनिवार्यता और पहचान हो...
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