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लद्दाख के पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग कर रहे संगठन बोले- फूट डालने का प्रयास कर रहा केंद्र

-द वायर, केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के दोनों जिलों मुस्लिम बहुल्य कारगिल और बौद्ध बहुल्य लेह के बीच हमेशा से विवाद रहा है. इन दोनों ही जिलों की अलग-अलग पहचान और आकाक्षाएं रही हैं लेकिन केंद्र सरकार के पांच अगस्त 2019 के फैसले के दुष्परिणामों से निराश ये दोनों जिले अपने दशकों पुराने मतभेद दूर कर पूर्ण राज्य की मांग और क्षेत्र के स्थानीय निवासियों के विशेष अधिकारों के लिए एक साथ...

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हिमाचल के किसानों को अदानी का झटका, कंपनी ने घटाए सेब के दाम!

-गांव सवेरा, सेब खरीदने वाली अदानी एग्री फ्रेश कंपनी ने सेब किसानों को झटका दिया है. कंपनी ने जो दाम तय किए हैं, उन्हें सुनकर बागवानों में निराशा है. पिछले साल की तुलना में इस बार प्रतिकिलो के हिसाब से 16 रुपये कम दाम तय किए हैं.   एक ओर दिल्ली की सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीने से तीन नये कृषि कानूनों और कॉर्पोरेट की मनमानी के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं...

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ज़ोमैटो, स्विगी के डिलीवरी वर्कर्स- "हमें कंपनी ने गुलाम बना रखा है"

-न्यूजलॉन्ड्री,  ज़ोमैटो के डिलीवरी वर्कर्स के लिए अपनी वेबसाइट के विरोधाभासों को नजरअंदाज़ कर पाना कठिन है. 'राइड विथ प्राइड' के आश्वासन के साथ उनकी वेबसाइट 'एक लाख से अधिक हैप्पी पार्टनर्स' होने और '10 करोड़ से अधिक हैप्पी डिलीवरी' करने का दावा करती है. वह भी ऐसे समय में जब देश भर में 'डिलीवरी पार्टनर्स' खुश नहीं हैं. पिछले दो हफ्तों से ज़ोमैटो और स्विगी के डिलीवरी कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर...

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नवउदारवाद और राष्ट्रवाद के बीच में खेती-किसानी का भविष्य

-न्यूजक्लिक, सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के देशों में मुक्ति का संघर्ष जिस साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद से संचालित था, वह उस पूंजीवादी राष्ट्रवाद से बिल्कुल भिन्न प्रजाति की चीज थी, जिसका जन्म सत्रहवीं सदी में यूरोप में हुआ था। पश्चिम में इस तरह की प्रवृत्ति है, जिसमें प्रगतिशील भी शामिल हैं, जो राष्ट्रवाद को एकसार तथा प्रतिक्रियावादी श्रेणी की तरह देखती है। वे साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद तक को यूरोपिय पूंजीवादी राष्ट्रवाद के...

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कृषि अध्यादेश आने के बाद नई मंडियों के निर्माण पर योगी सरकार ने क्यों लगाई रोक?

-न्यूजलॉन्ड्री, केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भारी संख्या में किसान बीते नौ महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. इस दौरान किसान नेताओं और सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका में कोई हल नहीं निकला. दरअसल सरकार इन कानूनों को किसान हित में बता रही है, वहीं किसान नेता इसे काला कानून बताकर सरकार से वापस...

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