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क्यों कुपोषण से प्रभावित श्योपुर में बच्चों को पोषण केंद्रों में ले जाने से कतरा रहे हैं परिजन?

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के विजयपुर तहसील अंतर्गत आने वाले ठाकुरपुरा गांव की चंदा डेढ़ वर्ष की है लेकिन उसका वजन पांच किलो भी नहीं है. अति गंभीर कुपोषित की श्रेणी में आने वाली चंदा को इलाज और उचित पोषण के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) ले जाने के लिए चिह्नित किया गया है. लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और प्रशासन के प्रयासों के बावजूद चंदा के परिजन उसे एनआरसी ले जाने...

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कीटनाशकों पर अंकुश से कम हो सकती हैं किसान-आत्महत्याएं- नई रिपोर्ट

दुनिया में आत्महत्या के हर पांच मामले में एक मामला कीटनाशक के जरिये आत्महत्या करने का होता है और आत्महत्या का यह तरीका निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों के ग्रामीण तथा खेतिहर इलाकों में देखने को मिलता है. यह कहना है हाल ही में प्रकाशित पुस्तिका प्रीवेंटिंग स्यूसाइड: ए रिसोर्स फॉर पेस्टिसाइड रजिस्ट्रार्स एंड रेग्युलेटर का.   विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ऑफ युनाइटेड नेशन्स (एफएओ) द्वारा संयुक्त रुप से प्रकाशित इस...

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आंध्र प्रदेश: 2014-19 के बीच 1,513 किसानों ने की आत्महत्या, सिर्फ 319 परिवारों को मुआवजा मिला

अमरावती: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने बुधवार को बताया कि राज्य में 2014 से 2019 के दौरान 1,513 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि 391 परिवारों को ही अनुग्रह राशि (मुआवजा) दिया गया.   मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्य मुख्यालयों से जिला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को संबोधित किया.   उन्होंने कहा, ‘राज्य में जिला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार 2014-19 के दौरान 1,513 किसानों ने आत्महत्या...

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जीरो बजट कृषि का विचार नोटबंदी की तरह घातक है- राजू शेट्टी

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण है क्योंकि यह कृषि जैसे मुश्किल व्यवसाय को सरलता से प्रकट करता है। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि में जोखिम कम होता है और पूंजी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इसे विदर्भ के किसान नेता सुभाष पालेकर द्वारा गढ़ा गया है जिन्हें 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को वैसा ही स्थान मिला...

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टॉपर्स का कारखाना और कामयाबी के असल मायने- अभिजीत पाठक

बीते दिनों सीबीएसई के बारहवीं के नतीजे आए. इसमें कुछ आश्चर्यजनक नहीं है कि ‘सफलता' को पूजने वाले इस समाज में हर जगह ‘टॉपर्स' का गुणगान किया जाता है. जब टेलीविजन चैनल उनका इंटरव्यू करते हैं और अखबार उनकी- ‘कड़ी मेहनत', ‘एकाग्र अध्ययन', अभिभावकों की प्रेरक भूमिका- की कहानियां सुनाते हैं, तब हम सीखने के अनुभव और प्रदर्शन को आंकड़ों में बदलकर और मिथकीय बना देते हैं, जैसे- 499/500! हालांकि ‘असफलताओं'...

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