सत्ता में किसी राजनेता का पहला साल हनीमून का दौर माना जाता है। उम्मीदों ने आसमान से उतरना भले ही शुरू कर दिया हो, लेकिन पहले 365 दिन में वे औंधे मुंह गिर जाएं, ऐसा अक्सर नहीं होता है। योजनाओं, नीतियों व फैसलों के नतीजे आने शुरू नहीं होते, इसलिए आलोचकों के पास कहने को ज्यादा कुछ होता नहीं है। विपक्षी दलों के पास भले ही ढेर सारी आपत्तियां हों,...
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भूमंडलीकरण और भ्रष्टाचार विरोधी स्वर- नयन चंदा
खुला आसमान - वैश्वीकरण के कारण भारत, चीन, ब्राजील, तुर्की और थाइलैंड सहित कई देशों में जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर हो गई है। भूमंडलीकरण के कारण से दुनियाभर में कई तरह की हवाएं चल रही हैं। इसमें भ्रष्टाचार भी है। कई देशों में इसके खिलाफ स्वर उठने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार का सीधा संबंध भूमंडलीकरण से है लेकिन व्यापार और निवेश के लिए दूसरे देशों में...
More »बढ़ते संसाधन घटता ज्ञान - शंकर शरण
जनसत्ता 11 नवंबर, 2014: एक समय था जब देश के जिला केंद्र ही नहीं, अनेक कस्बों में भी भाषा, गणित और विज्ञान के ऐसे शिक्षक होते थे जिनकी स्थानीय ख्याति हुआ करती थी। यह दो पीढ़ी पहले तक की बात है। तब विद्यालयों के पास संसाधन कम थे और शिक्षकों का वेतन भी बहुत कम था। स्कूल के कमरे, मामूली कुर्सी, बेंच, पुस्तक, छात्र और शिक्षक, यही तत्त्व शिक्षा-परिदृश्य बनाते...
More »काले धन के मसले पर बदलता रुख - आकार पटेल
भारतीयों ने कितना काला धन विदेशों में रखा है? इस बारे में किसी को सही-सही जानकारी नहीं है. सरकार को भी नहीं! वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 80 बिलियन डॉलर काला धन होने के अनुमान पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है. भारत के उद्यमियों के सबसे बड़े संगठन (एसोचैम) का कहना है कि काले धन का आंकड़ा दो ट्रिलियन...
More »सरकार और अदालत के दायरे - जगदीप धनकड़
यदि हाल के दिनों में मीडिया में आई खबरों और रिपोर्टों की मानें तो कहा जा सकता है कि न्यायिक सक्रियता अपने चरम पर है। मीडिया में अकसर इस आशय की खबरें छपती हैं कि अदालत ने फलां मामले में सरकार को आड़े हाथों लिया है या उसे लताड़ लगाई है। कई मामलों में तो अदालत ने विपक्षी दलों से भी ज्यादा सरकार की मुखालफत की है। कभी-कभी ऐसा भी...
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