जाति का भूत देखते ही अच्छे-अच्छों की मति मारी जाती है. या तो लोग बिल्ली के सामने आंख मूंदे खड़े कबूतर की तरह हो जाते है, कड़वी सच्चाई का सामना करने के बजाय यह खुशफहमी पालने लगते हैं कि जाति है ही नहीं. या फिर उनकी गति सावन के अंधे की तरह हो जाती है. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है और इसी तर्ज पर कुछ लोगों...
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दुनिया में घट रही है गरीबी- सोमिनी सेनगुप्ता
भयावह गरीबी में दुनिया भर में तेज गिरावट तो आई ही है, अब लड़कों के साथ-साथ बहुत-सी लड़कियां भी विश्व के तमाम प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रही हैं। वहीं मच्छरदानी लगाने जैसे साधारण-से उपायों से करीब साठ लाख लोगों को मलेरिया से होनेवाली मौत से बचाया गया है। लेकिन करीब एक अरब लोग अब भी खुले में शौच करते हैं, जो कई अन्य लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में...
More »इमरजेंसी में कई मायनों में हुई थी चूक - जस्टिस राजिंदर सच्चर
जो देश अपने हाल-फिलहाल का इतिहास याद नहीं रखते, वे एक ही तरह की दुर्घटना दोहराने का खतरा उठाते हैं। देश की दो तिहाई आबादी 35 साल से नीचे की है। यदि इनमें से किसी से आपातकाल लगाए जाने के दिन यानी 26 जून, 1975 का महत्व पूछिए तो उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते हैं। कई बार 55 साल के लोगों से भी ऐसा जवाब नहीं मिलता, जिससे...
More »राजनीतिक बिसात पर आंबेडकर- कुमार प्रशांत
बिहार का आसन्न चुनाव कितने नये रंग बिखेर रहा है! एक नया परिवार ही जन्म लेने, न लेने के पसोपेश में पड़ा है, तो एक नया आंबेडकर भी पूजा के स्थान पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है. यह कितना अजीब है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिन्होंने कभी भाग नहीं लिया; जो आजादी की लड़ाई में कभी जेल नहीं गये; आजादी की लड़ाई की जगह जिन्होंने वॉयसराय के दरबार की...
More »संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी- सुषमा वर्मा
भाजपा और कांग्रेस महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने और लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण की चाहे जितनी वकालत करें, उनकी कथनी और करनी में फर्क बरकरार है. महिलाओं के सशक्तीकरण तथा बराबरी की बात करनेवाले दलों की असलियत टिकट वितरण के समय सामने आ जाती है. यह भी देखने में आता है कि प्रमुख महिला प्रत्याशी के खिलाफ अकसर महिला को ही मैदान में उतारते है. ऐसे...
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