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किसानों और गरीबों की जीत- श्रीकांत शर्मा

विश्व व्यापार संगठन (डब्‍ल्‍यूटीओ) की महासभा ने 27 नवंबर को खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए भंडारण के संबंध में एक अहम निर्णय किया है, जिसके बाद भारत में गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम और किसानों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) पर आसन्‍न संकट टल गया है। भारत अब डब्‍ल्‍यूटीओ के सदस्‍य देशों के दखल के बगैर गरीबों को सस्‍ता अनाज देता रहेगा और किसानों को उनकी उपज के...

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'तो गाँव की हर औरत लखपति होती..'

जॉर्ज मोनबाएट ने कहा है कि अगर धन कठिन परिश्रम और व्यवहार कुशलता का परिणाम होता तो अफ्रीका की प्रत्येक महिला लखपति होती. भारत की अर्थव्यवस्था में गांवों की अहम भूमिका है और गांवों की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका पुरुषों से ज़्यादा है. यानी ग्रामीण महिलाएं भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं, लेकिन उनकी मुश्किलों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. न ही समाज का और न ही सरकार का. उनकी...

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घट रहा है कुपोषण, रफ्तार में तेजी की जरुरत..

कुपोषण के मोर्चे से एक अच्छी खबर! भारत केंद्रित एक सर्वेक्षण के शुरुआती निष्कर्ष हैं कि पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण का स्तर साल 2005-06 से 2013-14 के बीच घटा है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2014 में संकलित किए गए हैं। (देखें नीचे दी गई लिंक और बिन्दुवार तथ्य) रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रेन नाम का यह सर्वेक्षण नागरिक संगठनों, स्वास्थ्य और खाद्य-सुरक्षा विशेषज्ञों की निरंतर...

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नरेगा मजदूरों की काली दिवाली- ज्यां द्रेज

कुछ दिन पहले जब दीये और पटाखे की रोशनी से देश जगमगा रहा था तो बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में सैकड़ों नरेगा मजदूर ‘काली दीवाली' मनाने के लिए इक्कट्ठा हुए। उन्हें महीनों से मजदूरी नहीं मिली थी। मजदूरी मिलने के इंजतार में थक-हार कर नरेगा मजदूरों ने तत्काल भुगतान की मांग के साथ एक धरने का आयोजन किया। धरने पर बैठे मजदूर ज्यादा कुछ नहीं मांग रहे थे- उन्हें बस...

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बच्चों को स्कूल क्यों पसंद नहीं आता - पंकज चतुर्वेदी

वह बमुश्किल तीन साल की होगी, पापा की गोदी में जब कार से उतरी, तो चहक रही थी। जैसे ही बस्ता उसके कंधे पर गया, तो वह सुबकने लगी, रंग-बिरंगे पुते, दरवाजे तक पहुंची, तो दहाड़ें मारने लगी। वह स्कूल क्या है, खेल-घर है, वहां खिलौने हैं, झूले हैं, खरगोश और कबूतर हैं, कठपुतलियां हैं, फिर भी बच्ची वहां जाना नहीं चाहती। क्योंकि...

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