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नेटवर्क के जरिए नक्सलवाद से लोहा- बाबा उमर

2,200 नए मोबाइल टावरों के साथ केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ सहित तमाम नक्सल प्रभावित राज्यों में वह सफलता दोहराने की उम्मीद कर रही है जो उसे इसी प्रयोग से जम्मू-कश्मीर में हासिल हुई है. बाबा उमर की रिपोर्ट. कहने को जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 2,100 किलोमीटर का फासला हो, लेकिन वे इस मायने में एक जैसे हैं कि दोनों ही लंबे समय से अलगाववादी हिंसा की मार झेल रहे हैं. जम्मू-कश्मीर...

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ऐसे संघर्ष का औचित्य क्या है- विनोद कुमार

जनसत्ता 15 जून, 2013: बूर्जुआ राजनीतिक दलों और पुलिस प्रशासन की नजर में उग्रवादी, आतंकवादी, नक्सली और माओवादी, सभी एक हैं। उनकी नजर में तो यथास्थितिवाद का विरोध करने वाला हर आदमी नक्सली है। लेकिन इन सब में फर्क है। सबों के राजनीतिक दर्शन और लक्ष्यों में अंतर है। मोटे रूप में कहा जाए तो देश में सक्रिय उग्रवादी और आतंकवादी संगठन देश का विखंडन चाहते हैं, अलग देश की...

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मरते मुलाजिम- राजकुमार सोनी

चार साल के दौरान पुलिस अधीक्षक, अपर कलेक्टर, इंजीनियर जैसे तमाम अधिकारियों सहित लगभग 200 सरकारी कर्मचारियों की खुदकुशी छत्तीसगढ़ में फैले भ्रष्टाचार और उस पर सरकारी संवेदनहीनता की तरफ इशारा करती है. राजकुमार सोनी की रिपोर्ट. केस- एक भारतीय पुलिस सेवा के 2002 बैच के अफसर एवं बिलासपुर जिले में पुलिस कप्तान की हैसियत से तैनात राहुल शर्मा ने इस साल 12 मार्च, 2012 को खुदकुशी कर ली थी. उन्होंने पुलिस ऑफिसर्स...

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पीड़ा के जंगल में आदिवासी- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 24 दिसंबर, 2011 : आजादी के बाद आदिवासी ने क्या हासिल किया, इस विषय पर राजस्थान के बूंदी में दो दिन की चर्चा थी। इस अवसर पर किसी वक्ता ने यह नहीं कहा कि अंग्रेजों के जाने के बाद आदिवासियों की जीवन-दशा में किसी किस्म का बुनियादी बदलाव आया है। फिर आदिवासियों की उम्मीद और इस व्यवस्था के प्रति भरोसे को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव में...

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राजनैतिक मर्यादा की प्रतिमूर्ति-योगेंद्र यादव

सुरेंद्र  मोहन जी की चिता जलती देखकर फ़िर एक बार मन में विचार आया. इंडिया गेट पर ’अमर जवान ज्योति’ की तरह देश में कहीं-न-कहीं एक गुमनाम राजनैतिक कार्यकर्ता का स्मारक भी बनना चाहिए. बदन पर सादा, बिना प्रेस किया कुर्ता-पाजामा, पैर में रबड़ की चप्पल, कंधे पर झोला और आंखों में चमक. मूर्ति के नीचे लिखा जा सकता है ‘पूर्णकालिक राजनैतिक कार्यकर्ता’. जैसे सुरेंद्र मोहन जी थे.और कुछ नहीं तो...

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