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पीछे छूट गया रोजगार का सवाल- हरिवंश चतुर्वेदी

आर्थिक उदारीकरण के दौर में जिन राज्यों के आर्थिक विकास की दर तेज रही और जिन्हें समय-समय पर एक मॉडल की तरह पेश किया गया, वहां अब सामाजिक- आर्थिक स्थिति विस्फोटक हो रही है। पिछले एक वर्ष में हरियाणा के जाटों, गुजरात के पटेलों, महाराष्ट्र की मराठा जातियों और आंध्र प्रदेश में कापू जाति के लोगों ने खुद को अन्य पिछड़ी जातियों में शामिल किए जाने की मांग को लेकर...

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सवाल विज्ञान-मुखी बनने का है-- प्रमोद जोशी

विजय माल्या के पलायन, देशद्रोह और भक्ति से घिरे मीडिया की कवरेज में विज्ञान और तकनीक आज भी काफी पीछे हैं. जबकि इसे विज्ञान और तकनीक का दौर माना जाता है. इसकी वजह हमारी अतिशय भावुकता और अधूरी जानकारी है. विज्ञान और तकनीक रहस्य का पिटारा है, जिसे दूर से देखते हैं तो लगता है कि हमारे जैसे गरीब देश के लिए ये बातें विलासिता से भरी हैं. नवंबर...

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जवानी कहीं दीवानी न हो जाये!- अनिल रघुराज

इधर जवानी का जलवा-जलाल कुछ ज्यादा ही चढ़ गया है. मानव संसाधन में युवाओं की भूमिका का बखान बराबर हो रहा है. हम दुनिया के सबसे जवान देश हैं. हमारी 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम की है. मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी कुछ दिन पहले बमक पड़ीं कि 50 साल के राहुल गांधी युवा कैसे हो सकते हैं. खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर बड़े संजीदा हैं....

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‘भारत में आजादी’ का अर्थ-- रविभूषण

आजादी की लड़ाई में आजादी के स्वरूप और उसकी अवधारणा को लेकर बीसवीं सदी के बीस के दशक के मध्य से जो विचार-मंथन आरंभ हुआ था, वह 1947 की अधूरी राजनीतिक आजादी या सत्ता-हस्तांतरण के कुछ वर्ष बाद थम गया. रुक-रुक कर वास्तविक और मुकम्मल आजादी की बातें हुईं. ‘संपूर्ण क्रांति' का आंदोलन भी हुआ, पर कुछ समय बाद ही न उसमें गति रही, न शक्ति, और न इच्छाशक्ति ही...

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प्रतीकों के पीछे छुपे हुए अर्थ - मृणाल पांडे

आज जब देशभक्ति पर तर्कशील विमर्श असंभव होता जा रहा है और भावुकता दिमागों पर हावी है, ऐसे में राष्ट्र को एक मातृदेवी का रूप देने की तर्कसंगत व्याख्या सामयिक है। संविधान के तहत धर्मनिरपेक्ष घोषित देश में राष्ट्रभक्ति को भारतमाता की देवीस्वरूपा प्रतिमा की तरह जयकारे बुलवाने और प्रणाम करने की जिद पर गौर करना चाहिए, जो बहुलतामय भारत के राज-समाज में प्रभु के विभिन्न् स्वरूपों को मानने वालों...

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