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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट

खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...

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शिक्षा का अधिकार विधेयक-देर आये- कम लाये?

कहा जा रहा है कि शिक्षा का अधिकार विधेयक ने एक इतिहास रचा है लेकिन क्या सचमुच ऐसा है। पक्ष और विपक्ष में ढेर सारी दलीलें हैं लेकिन यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस विधेयक ने देश के शिक्षाविदों और नागरिक-संगठनों का कार्यकर्ताओं दोनों को समान रुप से निराश किया है। लोकसभा में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान करने वाला जो विधेयक पास हुआ वह एक तरह से...

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भुखमरी-एक आकलन

 खास बात   - साल 1990 में भारत का जीएचआई अंक 32.6 था, साल 1995 में यह अंक 27.1, साल 2000 में 24.8, साल 2005 में  24.0 तथा साल 2013 में 21.3 था। साल 2013 में भारत का जीएचआई अंक(21.3) चीन (5.5), श्रीलंका (15.6), नेपाल (17.3), पाकिस्तान (19.3) और बांग्लादेश (19.4) से बदतर है।@ -साल १९८३ में देश के ग्रामीण अंचलों में प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत कैलोरी उपभोग २३०९ किलो कैलोरी का था जो साल १९९८ में घटकर २०१०...

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आँकड़ों में गांव

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अपने 77वें दौर के सर्वेक्षण के आधार पर 10 सितंबर, 2020  को 'ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत, 2019' नामक रिपोर्ट जारी की है. यह रिपोर्ट 1 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2019 के बीच किए गए एनएसओ के 77वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित है. इस अवधि के दौरान एनएसओ द्वारा 45000 से अधिक कृषि परिवारों का...

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न्याय:कितना दूर-कितना पास

  खास बात  • साल २००९ के अप्रैल महीने तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मुकदमों की संख्या ५०१४८ थी। केसों के निपटारे की गति बढ़ी है मगर शिकायतों के आने की गति और जजों की संख्या केसों के आने की गति की तुलना में अपर्याप्त साबित हो रही है।*  • दो साल पहले यानी साल २००७ के जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट में लंबित केसों की संख्या ३९७८० थी। सुप्रीम कोर्ट लंबित केसों के निपटारे में तेजी लाने असहाय महसूस...

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