पटना सूबे की आबादी बढ़ रही है, पर जमीन का रकबा नहीं बढ़ाया जा सकता है। परिवार बंटने से जमीन की जोत घट रही है। ऐसी स्थिति में कम जमीन में अधिक पैदावार की तकनीक अपनाने की जरूरत है। इसके लिए एक एकड़ में एक परिवार के जीविकोपार्जन के लिए समेकित कृषि प्रणाली का तरीका निकाला गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को किसानों से भरे श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में आयोजित समारोह में ये...
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ग्रामीण भारत में गरीबों की तादाद आधिकारिक आकलन से ज्यादा
यह बात अब आधिकारिक सूचना में आ चुकी है कि भारत में गरीबी पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा है। इस माह की 9 तारीख को सौंपी गई सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 37 फीसदी(2004-05) है ना कि 28 फीसदी, जैसा कि पहले के आकलनों में माना जाता रहा है।यदि तेंदुलकर समिति के आकलन में खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई मौजूदा बढ़ोतरी को जोड़ दें...
More »अभी और बढ़ेगी महंगाई
साल २००५ से २००७ के बीच दुनिया में गेंहूं, चावल और तेलहन के दामों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है और इन चीजों के दामों में साल २००८ की पहली छमाही में भी बढ़ोतरी जारी रही।ओईसीडी(आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगामी दस सालों में चावल-गेहूं सहित बाकी अनाज और तेलहन में पिछले दशक के मुकाबले १० से ३५ फीसदी की बढ़ोतरी होगी।...
More »पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट
खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...
More »भूख का बढ़ता भूगोल
भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...
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