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खेती की उपेक्षा और खाद्य सुरक्षा- भारत डोगरा

जनसत्ता 21 मार्च, 2012: लोकसभा में पिछले वर्ष प्रस्तुत किए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक से कोई सहमत हो या असहमत, पर इसके महत्त्च से इनकार नहीं किया जा सकता। मौजूदा रूप या इससे काफी मिलते-जुलते रूप में यह विधेयक पारित हो गया तो आने वाले अनेक वर्षों तक इसका हमारी खाद्य और कृषि व्यवस्था पर बहुत व्यापक असर पड़ेगा। इसलिए इस विधेयक से संबंधित जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे...

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अनपढ़ आरटीआइ कार्यकर्ता

सहारिया जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में पायी जाती है. मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के बारां जिले के शाहबाद और किशनगढ़ प्रखंड में भी इनकी ठीकठाक संख्या है. यहां सहारिया लोगों के पास किसी जमाने में काफ़ी जमीन हुआ करती थी. लेकिन कोई दस्तावेज नहीं होने के कारण धीरे- धीरे इनकी जमीनों पर गैर ओदवासियों और दबंगों ने कब्जा कर लिया. सरकार ने सहारिया को आदिम जनजाति का दरजा दिया...

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अन्न स्वराज- वंदना शिवा

भोजन का अधिकार जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ है और संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस लिहाज से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक स्वागतयोग्य है। पिछले दो दशकों में भारत में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए थे, तब प्रति व्यक्ति भोजन की खपत 178 किलोग्राम थी, जो 2003 में...

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बीज में छिपी है खाद्य संप्रभुता- वंदना शिवा

यदि किसानों के पास अपना बीज न हो या मुक्त परागण किस्मों तक उनकी पहुंच न हों, जिसे वे सुरक्षित रख सकें या जिसका वे विनिमय कर सकें, तो उनके पास बीज संप्रभुता नहीं होगी। नतीजतन उनके पास खाद्य संप्रभुता भी नहीं होगी। गहराते कृषि एवं खाद्य संकट की जड़ें बीज आपूर्ति प्रणाली में हो रहे बदलाव और बीज विविधता व बीज संप्रभुता के क्षरण में निहित है। क्योंकि खाद्य...

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सोशल ऑडिट से भ्रष्टाचार पर अंकुश - भरत डोगरा

सरकार की ओर से विकास कार्यों की विभागीय जांच तो होती ही रहती है और इसकी सीमाएं भी अब स्पष्ट हो चुकी हैं। पर यदि विकास कार्यों की जांच और मूल्यांकन उस समुदाय की भागीदारी से की जाए, जिसके लिए ये कार्य किए जाते हैं, तो उसके कहीं बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। विशेषकर ग्रामीण विकास सुधारने के संदर्भ में तो सामाजिक अंकेक्षण के कुछ बहुत अच्छे उदाहरण, सरकारी व...

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