भारत सरकार द्वारा वर्ष 2011 में हुई जनगणना के आर्थिक, सामाजिक गणना के आंकड़े हाल ही में प्रकाशित किये गये हैं. ये आंकड़े भारत में गरीबों की वर्तमान दुर्दशा की कहानी बयान कर रहे हैं. चिंता का विषय केवल यह नहीं है कि गरीबों की हालत खराब है, बल्कि वह पहले से तेज गति से बदतर होती जा रही है. गौरतलब है कि अभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ही ये...
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गांवों की अनदेखी से विकास असंभव- उमेश चतुर्वेदी
उदारवादी अर्थव्यवस्था के इस दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था यदि खेती-किसानी और उसके जरिये जीने वाले गांवों पर टिकी हुई है, तो मान लेना होगा कि हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीयता की परंपरा अब भी बनी हुई है। आर्थिक नीतियों की कामयाबी और नाकामी का पैमाना अब अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों फिच और मूडी की रिपोर्टों और उनके आकलन के आधार पर तय होता है। हाल ही में मूडी...
More »कितना काला है काला धन?- प्रीतीश नंदी
आखिरकार कोई तो बुद्धिमानी से बोला। अब तक तो हमने काले धन को लेकर हर किसी को आक्रोश व्यक्त करते हुए ही देखा, लेकिन किसी ने व्यावहारिक समाधान नहीं सुझाया। बोफोर्स घोटाले से इसकी शुरुआत हुई थी और उसके कारण राजीव सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। फिर तो हर किसी को यह समझ में आ गया कि काला धन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की प्रतिष्ठा को खत्म करने का एकदम...
More »शहरों में बढ़ेगा बढ़ती आबादी का बोझ- ज्ञानेन्द्र रावत
दुनिया की आबादी सात अरब को पार कर चुकी है। इसमें हर साल आठ से नौ करोड़ की वृद्धि चिंतनीय है। संयुक्त राष्ट्र की मानें, तो भविष्य में भारत को मिलाकर कुछ बड़े अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देश वैश्विक आबादी तेजी से बढ़ाएंगे। भारत सबसे बड़ी आबादी वाला दुनिया का दूसरा देश है। आने वाले 10-12 वर्षों में भारत चीन से आगे निकल जाएगा। आशंका है, 2060 में भारत की...
More »व्यापमं ने साख पर उठाए सवाल - आरती जेरथ
आखिरकार सर्वोच्च अदालत को व्यापमं घोटाले में वह हस्तक्षेप करना ही पड़ा, जो कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बहुत पहले ही कर देना था। सर्वोच्च अदालत ने अब न केवल व्यापमं घोटाले के तहत हुई फर्जी नियुक्तियों/दाखिलों, बल्कि इस घोटाले से जुड़े विभिन्न लोगों की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में हुई मौतों की भी सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं। यह एक स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन सवाल...
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