अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ ही हाल के दिनों में उभरे खनन विवाद, जमीन विवाद, परमाणु संयंत्र के खिलाफ माहौल या खाप पंचायत या गुर्जरों का क्षोभ जैसे दूसरे आंदोलन केवल सत्ता में स्थित खास पार्टी के खिलाफ चुनौती भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सरकारों की शासन की क्षमता पर सवाल उठाने से भी ज्यादा गहरे हैं। वस्तुतः वे हमारे राजनीतिक क्षेत्र की भावना को समय-समय पर अस्थिर...
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पदयात्रा, पंचायत और पैंतरेबाजी- (रिपोर्ट अतुल चौरसिया, तहलका)
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की हालिया पदयात्रा का एक मकसद साफ है, यह किसानों के हितों से ज्यादा चुनावी हितों को समर्पित थी. लेकिन राजनीति के ऐसे दौर में जब नेता गाड़ियों-बंगलों के बाहर झांकना ही नहीं चाहते, क्या उनकी यात्रा को सिर्फ अवसरवादी कहकर नकार दिया जाए? अतुल चौरसिया की रिपोर्ट पदयात्राएं और रथयात्राएं बहुत उत्पादक होती हैं. चुनावी शुभ-लाभ के लिहाज से. अतीत इसका दस्तावेज है. जिन लोगों ने...
More »बढ़ते गरीब और बेमानी बहस - अश्वनी कुमार
देशभर के शहरों में रहनेवाले गरीबों के आंकड़े जुटाने के लिए एक जून से सात माह का सर्वे शुरू हो चुका है. इसके साथ ही गरीबों की पहचान के मानदंड पर बहस भी फ़िर छिड़ गयी है. यह विडंबना ही है कि तमाम योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है. शहरी गरीबों की गणना की खबरों के साथ ही गरीबी को लेकर जारी बहस फ़िर छिड़ गयी है....
More »असंगति का संगीत- रोहिणी मोहन
कुछ मामलों में एक जैसे और ज्यादातर मामलों में एक-दूसरे से जुदा शांति और प्रशांत भूषण के छुए-अनछुए पहलुओं की पड़ताल करती रोहिणी मोहन की रिपोर्ट मई, 1995 की एक दोपहर को सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु ठक्कर अपने वकीलों प्रशांत और शांति भूषण के साथ सर्वोच्च न्यायालय में बैठे हुए थे. उनसे जरा-सी दूरी पर मुख्य न्यायाधीश एएस आनंद एक ऐसा फैसला सुना रहे थे जो पूर्वी गुजरात के कम से कम...
More »कितना खतरनाक है अन्ना का सपना!-- पुण्य प्रसून वाजपेयी
अगर यह आजादी का दूसरा आंदोलन है, तो क्या आप दूसरे महात्मा हैं. मैं तो महात्मा गांधी के पांव की धूल भी नहीं हूं. लेकिन एक बात कहूंगा भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने जो एहसान हम देशवासियों पर छोड़ा है, उसका एक अंश भी अगर हम देश को बनाने में चुका दें, तो बहुत बड़ी बात होगी. और हमारा संघर्ष यही है. आमरण अनशन तोड़ने के बाद अन्ना हजारे के...
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