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कहां खो जाते हैं महिलाओं के मुद्दे - रंजना कुमारी

मैं दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अपने एक गांव में वोट डालने गई थी। वहां अब भी बहुत ज्यादा विकास नहीं हुआ है। मगर एक अच्छी बात जरूर दिखी कि घरों से महिलाएं वोट डालने के लिए अकेली निकल रही थीं। पहले ज्यादातर वे परिवार की भीड़ का हिस्सा बनकर पोलिंग बूथों तक पहुंचती थीं, लेकिन इस बार वे अपने बच्चे का हाथ थामकर मतदान की कतारों में खड़ी थीं।...

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पिछड़े राज्यों को हक देना केंद्र का दायित्व- प्रो संजीव बजाज

झारखंड बने 13 साल से अधिक हो चुके हैं, पर यह आज भी अति पिछड़े राज्यों की गिनती में आता है. किसी भी राज्य के विकास में केंद्रीय सहायता का विशेष योगदान होता है. झारखंड में केंद्रीय सहायता की अपर्याप्त मात्र की वजह से आधारभूत संरचनाओं के निर्माण को गति नहीं मिल पायी.  झारखंड के निर्माण के समय भी राज्य में आधारभूत संरचनाओं की अत्यधिक कमी थी.  साथ ही राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य,...

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नवउदारवाद से उपजी चुनौतियां- प्रभात पटनायक

जनसत्ता 22 फरवरी, 2014 : यूपीए सरकार और राजग सरकार और यहां तक कि ‘तीसरे मोर्चे’ की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं। आज भी, जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो। सच्चाई तो यह है कि मोदी खुद इस बात पर जोर देते...

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भटके हुए चुनाव अभियान- सुनील खिलनानी

एक उम्मीदवार भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुखर है। वहीं दूसरा पुनर्वितरण और सशक्तिकरण की वकालत कर रहा है। एक तीसरा उम्मीदवार भी है, जो विकास की अलख जगाते हुए एक नए राष्‍ट्रीय गौरव का आह्वान कर रहा है, जिसमें हिंदुओं को पीड़ित बताए जाने की मंशा अंतर्निहित है। लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे ये तीनों संभावित नेता देश की बागडोर संभालने की मंशा तो रखते हैं, लेकिन इस जरूरी तथ्य...

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संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत

देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी...

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